पठानकोट आतंकी हमले में अंबाला का एक बेटा गुरसेवक तो शहीद हो गया, लेकिन एक और बहादुर बेटा भी था, जो पेट में गोली लगने के डेढ़ घंटे बाद भी आतंकियों के आगे डटा रहा। देखिए, उसके बारे में।
गंभीर रूप से घायल हुआ शैलभ पठानकोट आर्मी अस्पताल की आईसीयू में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। आईसीयू में केवल परिजनों को ही शैलभ से मिलने का मौका दिया गया। शैलभ ने मां को ढाढ़स बंधाया तो मां की जान में जान आई। मंजुला गौड़ कहती हैं कि उनका बेटा शूरवीर है। उन्हें बेटे पर बहुत गर्व है। उन्होंने मन पक्का करके ही बेटे को भारत मां की रक्षा के लिए भेजा है।आतंकी हमले वाले दिन दो जनवरी को तड़के ही आदमपुर एयरफोर्स स्टेशन से स्पेशल फोर्स गरुड़ कमांडो की टुकड़ी को पठानकोट रवाना कर दिया गया था। पठानकोट पहुंचते ही गरुड़ कमांडो ने आतंकियों की तलाश शुरू कर दी थी। इन्हीं में से एक टुकड़ी में अंबाला के दो जांबाज कमांडो गुरसेवक और शैलभ गौड़ भी थे। इसी टुकड़ी ने सबसे पहले आतंकियों के ठिकाने को लोकेट किया और उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दी।
रिफोर्समेंट आने से पहले मोर्चा छोड़ने पर आतंकियों के ठिकाना बदल लेने का डर था। ऐसा होने पर हालात और बिगड़ जाते। इसलिए खून से लथपथ होने के बाद भी शैलभ डेढ़ घंटे तक मोर्चे पर डटा रहा। उसने आतंकियों की फायरिंग का जवाब देना जारी रखा। डेढ़ घंटे बाद रिफोर्समेंट पहुंची तो उसने शहीद गुरसेवक� के शव और घायल शैलभ को अपने कब्जे में लिया और उसे पठानकोट के आर्मी अस्पताल में पहुंचा दिया।
टीम का नेतृत्व करते हुए आतंकियों की गोलियां लगने के बाद गुरसेवक तो शहीद हो गया, लेकिन गोली लगने के बाद घायल हुआ शैलभ पठानकोट आर्मी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। शैलभ यदि ये जंग जीत जाता है तो उसकी ये जिंदगी शहीद गुरसेवक का कर्जदार रहेगी। एयरफोर्स के अधिकारियों के अनुसार शैलभ गौड़ अपने टीम लीडर कमांडो गुरसेवक के ठीक पीछे था। उनकी टीम में उनका सीनियर भी था।