मौत पर मातम मनाने का ढोंग सियासी सूझबूझ से जारी है. जहां सांत्वना देनी चाहिए वहां सियासत होने लगी. सियासी संवेदना के लिए शव चाहिये, वह शव रोहित ने अपनी दो पीढ़ी के ख्वाब का गलाघोंट कर इन्हें दे दिया है. अरे रूकिये.. रोहित ने दिया नहीं है. इससे छिन लिया गया है. बताइए भला एक आजाद ख्याल के लड़के को व्यवस्था कैसे जीने देगी? ना बिल्कुल नहीं.. तुम्हें मरना था रोहित आज नहीं तो कल.. ये उस व्यवस्था की मांग है.
सोचिएगा जरूर किस व्यवस्था ने परिवार के सहारे को, एक युवक के सपनों को, आजाद ख्याल की उम्मीद को, इंसानियत के शव को लटका दिया? सियासी लोगों से मुझे तो बिल्कुल संवेदना की उम्मीद नहीं होती है आपको है तो आप मूर्ख हैं सिर्फ मूर्ख. इनके अंदर की संवेदना मर चुकी है मालिक, समझिए और पता है जब संवेदना मर जाती है, तो आदमी अंधा हो जाता है. वही तो हो रहा है, हैदराबाद, अखलाक… खैर छोड़िए.
स्याही से अपनी तकदीर लिखने वह विश्वविद्यालय आया था. उस नासमझ को यही पता था कि तकदीर ऐसे ही लिखी जाएगी. लेकिन उसे कहां पता था कि भारत हो या पाकिस्तान उनको डर शिक्षा से ही लगता है. शिक्षा सोच देती है, तर्क देती है, आगाह करती है, बदलाव की कोशिश का रास्ता दिखाती है. बस फिर क्या…भारत हो या पाकिस्तान वहीं सबसे अधिक हमला होता है.
पता है कि उस दिन अखबार के पन्ने से झांकती हुई तुम्हारी तस्वीर किसी को भी असहज कर सकती थी. असहज करने की वजह रोहित के मरने की ‘वजह’ थी. मैं अखबारों के पेज पर ज्यादा देर तक नजरें नहीं टिकाता. शायद इसीलिये अखबारों के जिस पन्ने पर आमतौर पर नजर भी नहीं रुकती, ठिठकी हुई अंगुलियां जानें क्यों वही पन्ना पलट नहीं पाईं थी. स्याही से तकदीर लिखने का दंभ भरने वालों ने ही तुम्हारा गलाघोंट दिया था. इस व्यवस्था के कैसे शिकार हुए तुम.. ये ऑफिस आते-आते पता चलने लगा था.
आज लखनऊ की आंबेडकर यूनिवर्सिटी में पहली बार पीएम मोदी ने रोहित की मौत पर बयान दिया. रोहित को याद कर पीएम भावुक हो गए. पीएम ने कहा कि मजबूर होकर रोहित को खुदकुशी करनी पड़ी. उन्होंने कहा, ”जब ये खबर मिलती है कि मेरे देश के एक नौजवान बेटे रोहित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा, उसके परिवार पर क्या बीती होगी. मां भारती ने अपना एक लाल खोया है.” प्रधानमंत्री ने आगे कहा, ”कारण अपनी जगह पर होंगे, राजनीति अपनी जगह परह होगी, लेकिन सच्चाई यही है कि मां भारती ने अपना एक लाल खोया है.”
‘कारण अपनी जगह पर होंगे’ बड़ी ही सफाई से इसे टाल रहे हैं. अरे भैया.. कारण ही है जिसकी वजह से लाखों लोग रोज भेदभाव के शिकार हो रहे हैं. यही वह कारण है जिसकी वजह से गांव के गांव धर्म परिवर्तन करने पर मजबूर हैं साहब..सोचिए.. खैर हम भी आज ‘कारण’ से ज्यादा आप जैसे सभी सियासी दलों के मगरमच्छ के आंसू से पीड़ित हैं. अब सियासी ड्रामे से रोज दो चार हो रहे हैं हम. अखलाक की मौत पर भी हमने देखा सभी दल पहुंच गये गिद्ध की तरह उसके शव को नोचने.. आज रोहित के साथ भी यही हो रहा है. मुझे भारत के हर सियासी दल से वैसे ही घृणा हो रही है.. जैसे गुलाम भारत के लोगों को अंग्रेजों से थी. ये रोने धोने का नाटक करने के बजाए आप सत्ता में हैं ‘कारण’ पर कार्रवाई क्यों नहीं करते हैं? 125 करोड़ का दंभ भरते हैं.. 56 इंच के सीने का दावा करते हैं और जब कठोर कदम उठाने की बात आती है तो सिर्फ रो धोकर.. भावुक होकर … इतिश्री कर लेते हैं.
मौत पर शर्मिंदा होने का नाटक करने वाली सरकार झूठ बोल रही है. आपकी सरकार एबीवीपी के कार्यकर्ताओं से भिड़ने की सजा उन छात्रों को मुकर्रर कर दी. कार्रवाई को लेकर आपकी सरकार इतनी बेसब्र हो उठी थी कि वीसी को 26 दिन के भीतर 3 रिमाइंडर भेजे गये. रोने के बजाए जाकर जरा पूछिएगा अपने शिक्षा मंत्रालय से.. कि ऐसी कौन सी बेचैनी थी? मानव संसाधन विकास मंत्रालय छात्र राजनीति के मतभेदों को राष्ट्रविरोधी साबित करने के एकसूत्री कार्यक्रम में जुट गया. फिर कुछ दिन के बाद निलबंन वापस.. अरे भई..तो कार्रवाई क्यों? रूमाल से आंसू पोछ चुके होंगे आप अभी.. अब दिल्ली आ जाइए आपको बताता हूं स्मृति ईरानी करीब आधे घंटे तक रोहित की मौत पर सफाई देती रहीं. सियासत न करने की अपील कर रही थीं और सिर्फ सियासत कर रही थीं. पता है इन्हीं के मंत्रालय से वीसी हारा और रोहित अपनी जिन्दगी से..
बर्बादियों के बेहिसाब टीसों को सिर्फ रोहित का परिवार ही नहीं.. लाखों करोड़ों लोग रोज महसूस कर रहे हैं. आप रोने के बजाए बस कुछ काम करिये.. उस दर्द के खिलाफ होने के बजाए, उस दर्द को मिटाएं..उनका साथ दें. वैसे एक बात और कहना चाहूँगा, साहब… क्या आप जानते भी हैं कि रोना किसे सोहाता है? कमज़ोर, बेबस और लाचार व्यक्ति अपनी पीड़ा को रोकर ज़ाहिर करता है. लेकिन आप तो देश के प्रधानमंत्री हैं. आपको रोना नहीं, अपनी सद्बुद्धि और अन्तर्आत्मा से साक्षात्कार करना चाहिए. क्योंकि वही आपको ये बता सकता है कि रोहित को जिस पाप की खातिर अपनी बलि देनी पड़ी उसके सूत्रधार आपकी सरकार के ही दो मंत्री हैं. रोहित तो अब लौट नहीं सकता, लेकिन पाप का प्रायश्चित तो हो सकता है. तो कीजिए. अपने दोनों मंत्रियों को मंत्रिमंडल से बाहर करके दिखाइए. देश को ये सन्देश लीजिए कि आपकी आंखों में घड़ियाली आंसू नहीं हैं. मंत्रियों से इस्तीफा लिये बगैर आपके टेसु ये स्थापित नहीं कर पाएंगे कि आपको मां भारती के एक होनकार सपूत को गंवाने की जो पीड़ा हो रही है, वो सच्ची है. आपके पास चहेते मंत्रियों को चलता करने के अलावा कोई चारा नहीं है, क्योंकि यहां आप पठानकोट आतंकी हमले की तरह लाचार नहीं हैं.
राजनीति, संवेदनाओं के साथ ही वादों का सिलसिला भी चलता रहेगा, लेकिन उसके परिवार का दुःख शायद ही कम हो. उसकी मौत शर्म भी है और सबक भी. सवाल अब भी वही है कि रोहित की मौत का आखिर जिम्मेदार कौन है? अकेले ‘आप’ ‘हम’ या ‘सब’?