भारत अपनी स्वदेशी क्षेत्रीय दिशानिर्देशन प्रणाली ‘भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली’ (IRNSS) पर काम कर रहा है। भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली के बनने के बाद युद्ध के मैदान से लेकर रोजमर्रा इस्तेमाल की जाने वाली जानकारी को इस प्रणाली के माध्यम से पता किया जा सकेगा।
इस प्रणाली को इस्तेमाल कर के जहाँ एक तरफ सैनिक युद्ध के मैदान में दुश्मन की उपस्थिति का पता लगा सकते हैं वहीँ सामन्य नागरिक इसकी मदद से अनजान जगहों पर बिना किसी से पूछे अपना रास्ता ढूंढ सकतें हैं। साथ ही विमानन क्षेत्र में भी यह प्रणाली विशेष लाभदायक रहेगी। इसकी मदद से विमानों की लैंडिग व टेकऑफ़ में और अधिक सटीकता आएगी।
गौरतलब है कि आज के समय में अमेरिकन ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है और फोन में गूगल मैप्स से लेकर वाहनों के ‘गार्मिन’ की जीपीएस प्रणाली तक अमेरिकी स्वामित्व और अमेरिकी सेना द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
मिलेगी सटीक स्थिति की जानकारी:
भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली सात उपग्रहों से मिलकर काम करेगी और इससे भारतीय उपमहाद्वीप और भारतीय सीमा से 1500 किलोमीटर तक के क्षेत्र की बेहद ही सटीक जानकारी मिल पायेगी। यह उपग्रह प्रणाली दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र की सटीक जानकारी देगा लेकिन ग्लोब के अक्षांश 30 डिग्री दक्षिण से 50 डिग्री उत्तर और देशांतर 30 डिग्री पूर्व से 130 डिग्री पूर्व क्षेत्र की कम सटीक जानकारी दे सकेगा। जापान, उत्तर पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, मध्य पूर्व, चीन और मंगोलिया, पूर्वी अफ्रीका, और मेडागास्कर ऐसे देश हैं जो भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली की रेंज में नहीं आ पांएगे।
इसरो के जनसंपर्क निदेशक देविप्रसाद कर्णिक ने भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) के बारे में बताते हुए कहा कि
“आईआरएनएसएस सात उपग्रहों से संचलित है जिसमें से तीन उपग्रह भू-स्थिर और चार उपग्रह भू-समकालिक हैं और इस उपग्रह के जरिये भारत में क्षेत्रीय पथ प्रदर्शन से जुड़ी सटीक जानकारियां उपलब्ध होंगी। कुल सात उपग्रहों में से पांच प्रक्षेपित किए जा चके हैं और अन्य दो भी मार्च 2016 तक अंतरिक्ष में स्थापित कर दिये जाएगें जिसके साथ भारत की अपनी दिशानिर्देशन प्रणाली काम करना आरंभ कर देगी। भारत में जीपीएस संकेतों की उपलब्धता 60-70 प्रतिशत ही है और हमें इसे और सटीक बनाने की जरूरत है। आईआरएनएसएस के बनने के बाद यह सटीकता 90-95 प्रतिशत हो जाएगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है इस भारत की स्वयं संचलित प्रणाली के आने के बाद अमेरिकी जीपीएस के ऊपर निर्भरता कम हो जाएगी।”