लखनऊ: हाल में ही योगी सरकार ने प्रदेश के 26 सीनियर आईपीएस अफसरों का तबादला किया है. इसी के साथ 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी दावा शेरपा को गोरखपुर का ADG नियुक्त किया है. जिसके चलते सरकार पर नौकरशाही के भगवाकरण करने के आरोप लगना शुरू हो गए है.
दरअसल, पिछले चार सालों से अपनी सर्विस में अनुपस्थित रहने वाले शेरपा इस दौरान बीजेपी से जुड़े रहे. दार्जिलिंग के रहनेवाले दावा शेरपा ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के लिए आवेदन किया था. लेकिन 20 साल की सर्विस पूरी नहीं होने के कारण इसको मंजूरी नही मिली थी.
अपने सर्विस से अनुपस्थित होकर वह अपने घर दार्जिलिंग चले गए और गोरखालैंड की राजनीति में उभर कर सामने आये. इसी दौरान दावा शेरपा बीजेपी में शामिल हुए और पश्चिम बंगाल में पार्टी के सचिव बन गए. शेरपा 2009 में यहां से लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन आख़िरी वक्त में जसवंत सिंह को टिकट मिल गया.
जिसके बाद बीजेपी छोड़ कर वे अखिल भारतीय गोरखा लीग में शामिल हो गए. छह क्षेत्रीय पार्टियों के मोर्चा डेमोक्रेटिक फ्रंट का उन्हें संयोजक भी बनाया गया. इस फ्रंट में एबीजीएल समेत 6 अन्य क्षेत्रीय पार्टियां शामिल हैं. राजनाथ सिंह के करीबी माने जाने वाले शेरपा 2012 में उत्तर प्रदेश में सक्रिय पुलिस सेवा में वापस लौटे.
उन्हें 2013 में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (डीआईजी) और बाद में इंस्पेक्टर जनरल के पद पर पदोन्नत किया गया. उनकी हालिया पोस्टिंग क्राइम ब्रांच-सीआईडी डिवीजन में एडीजी के रूप में हुई थी. अब विपक्ष सवाल पूछ रहा है कि जो अभी छह साल पहले बीजेपी का नेता था, उन्हें एडीजी कैसे बना दिया गया?
पुलिस सेवा और राजनीति के बीच की अदला-बदली पर आपत्ति जताते हुए पूर्व पुलिस प्रमुख विक्रम सिंह ने उन्हें कहा था कि सर्विस के दौरान आप ऐसी चीजें नहीं कर सकते. अगर आप वास्तव में राजनीति करना चाहते हैं तो पुलिस की वर्दी उतार दें और पूर्णकालिक राजनीति में चले जाएं. कोई भी किसी को रोक नहीं रहा है. लेकिन एक ही समय में आप आईपीएस ऑफिसर और राजनीति नहीं कर सकते. आपने खुद को एक विशेष संगठन और एक विशिष्ट राजनीतिक विचारधारा के साथ पहचान लिया है. इसलिए, आपको अखिल भारतीय सेवा में होने का कोई हक नहीं है.