मध्यप्रदेश के जबलपुर में माँ-बेटे के रिश्ते को कलंकित करते हुए जिंदगी के आखिरी लम्हों में अपनी माँ को पहचानें से इंकार कर दिया. इतना ही नहीं इन कलयुगी बेटों ने अपनी माँ को मुखाग्नि देने से भी इंकार कर दिया.
भगवती बाई ने अपने जिंदा रहते ही सारी सम्पत्ति का बेटों में बराबर बंटवारा कर दिया था. ताकि उसकी आँखें बंद होने के बाद उसके बेटे आपस में न झगड़े. लेकिन उसका ये कर्म उसके लिए मुसीबत बन गया. बेटों ने बंटवारे के बाद मां को अपने साथ रखने से इंकार कर दिया जिसके चलते भगवती बाई बृन्दावन के मदर टेरेसा आश्रम में शरण लेती पड़ी.
मदर टेरेसा आश्रम में जीवन के अंतिम समय में भी उससे कोई मिलने नहीं आया. अपने बेटो का इंतज़ार करते करते शनिवार को महिला की मौत हो गई जिसके बाद आश्रम के लोगों ने भगवती बाई के बेटों से सम्पर्क किया. इन कलयुगी बेटों ने अपनी ही मां पहचानने से इंकार करते हुए उसके साथ कोई रिश्ता न होने की बात कही.
भगवती बाई के अंतिम संस्कार के लिए जबलपुर शहर में चल रहे मुस्लिमो के सामाजिक संगठन गरीब नवाज़ कमिटी से सम्पर्क किया गया तो कमिटी के लोगों ने महिला के हिन्दू रस्म रिवाज़ के हिसाब से दाह संस्कार करने की ज़िम्मेदारी को स्वीकार करते हुए महिला की अर्थी को न सिर्फ कन्धा देकर शमशान तक पहुँचाया बल्कि उसका क्रिया कर्म भी किया.