एएमयू के कैनेडी ऑडिटोरियम में मुस्लिम स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन के 14 वे सालाना अज़मत-ए-रसूल कॉन्फ्रेंस में ग्रेट ब्रिटेन के प्रवासी भारतीय अल्लामा क़मरूज़ज़्मा आज़मी ख़ान आज़मी ने छात्रों से मुख़ातिब होते हुए अनेक बिंदुओं पर अपनी राय रखी.
उन्होंने सबसे पहले इंसान होने की शर्ते बताई. जिसमे उन्होंने न्यूटन का ज़िक्र करते हुए बताया कि किस प्रकार से एक पेड़ के नीचे बैठे व्यक्ति का दिमाग़ काम करता है वो कितना बड़ा अविधकर कर देता है, दूसरी तरफ उन्होंने तलबा का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि जब एक इंसान नदी के किनारे बैठकर कंकड पानी की तरफ फेंकता है तो एक आवाज़ निकलती है. जो उसको प्यारी लगती है फिर वो देखता है कि किस प्रकार कंकड़ पानी से एक आवाज़ करके निकल जाता है. ठीक उसी प्रकार वो एक बड़ी लकड़ी को पानी मे फेंकते है तो देखते है कि वो डूबती नही है. जिससे उनको महसूस होता है कि ज्यादा पानी मे बड़ी चीज रखी जाए तो वो तैरने लगती है. जिसको आर्किमिडीज का सिद्धांत कहते है जिसके माध्यम से पानी के जहाज़, नाव का अविष्कार हुआ.
अल्लामा क़मरूज़ज़्मा ने कहा कि कहने का तातपर्य यह है कि इंसान बनने के लिए व्यक्ति का मस्तिष्क खुला हुआ चाहिए, दिमाग तब ही खुला होगा जब वो समाज, दुनियाँ, मानवता के लिए सोचेगा. इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा जब वो मानवता के बारे में सोचेगा तो उसको धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करना पड़ेगा. जिसमे अनेक आसमानी किताबे दुनियाँ में आई है, जिसके अनेक प्रकार से पढ़ा गया है. लेकिन जो आखिरी किताब 14 सौ साल पहले आयी है. उसके इन सबके बारे में विस्तार से बताया गया है. अब यह इंसानो पर निर्भर है वो इनका प्रयोग किस लिए करेगा. क़ुरान दुनियां की एक मात्र ऐसी किताब है जिसमे पूर्ण मानवता का सार है. केवल उसको सही मायनों में समझने की आवश्यकता है. जिस प्रकार से लोग आजकल क़ुरान को आतंकवाद जैसे कैंसर के लिए इस्तेमाल कर रहे है. वास्तव में उन्होंने क़ुरान का सही अध्ययन किया ही नही है. अगर किया होता तो आज इस्लाम को इतना बदनाम नही किया होता, इस्लाम शांति, अमन का मज़हब है जिसके माध्यम से हम मानवता की पूर्ण सेवा सही मायनों में कर सकते है.
उन्होंने कहा, दुनियाँ में अनेक विचारधाराएं आई और समय के अनुसार यूज़ एंड थ्रो हो गयी लेकिन क्या वजह है इस्लाम को आये 14 सौ वर्ष हो गए फिर भी वो खूब फल फूल रहा है. दिन प्रतिदिन आगे बढ़ रहा है जितना इस्लामिक मुखालिफ ताकते इस्लाम को बदनाम कर रही है. यह मज़हब उतनी ही तेज़ी से देश दुनियाँ में आगे बढ़ रहा है. क्योंकि इस्लाम मे ही जीवन जीने की पूर्ण पद्धति के साथ-साथ मानवता का सरोकार पूर्ण रूप से मिलता है. उसको समझाने के लिए उन्होंने कन्फ्यूशियस जैसे दार्शनिक का ज़िक्र किया कि किस प्रकार उसकी विचारधारा आयी है और समय के अनुसार वो चली गयी. आज पूरे चीन में उसके मानने वाले मुठ्ठी भर लोग रह गए है. आखिर में उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म को आगे बढ़ने के लिए मानवता ही शर्त है. जिसमे यह शर्त पूर्णरूप से नही पाई जाएगी वो धीरे धीरे खत्म हो जाएगा.
एएमयू के नायब वाईस चान्सलर किछौछा शरीफ के खानवादे के प्रोफ़ेसर तबस्सुम साहब ने छात्र- छात्राओं का ध्यान इधर भी पोलियो जैसी बीमारी की तरफ आकर्षित किया. जिसमें उन्होंने बताया कि पिछले दशक में पोलियो के ज्यादातर मामले मुस्लिम कम्युनिटी में ही मिले थे. जिसके लिए हमे तालीम की तरफ ध्यान देना होगा, जब हम तालीमयाफ्ता होंगे तो किसी भी बीमारी से लड़ने की कुब्बत हमारे ज़हन में होगी उसके लिए उपचार भी होगा.
कांफ्रेस में अल बरकात एजुकेशन ट्रस्ट के सरेसर्वा प्रोफ़ेसर अमीन मियां क़ादरी बरकाती सज्जाद नशीन मारहरा ने इस दौर में अपने ईमान को बचाने के लिए अपने दिल मे इश्क़ ए मोहम्मद के साथ साथ मोहब्बत पर ज़ोर दिया. जिससे देश दुनियाँ में अमन का रास्ता बन सके, मुस्लिम स्टूडेंट आर्गेनाईजेशन के नेशनल प्रेसिडेंट इंजीनियर शुजात अली क़ादरी, एएमयू के प्रेसिडेंट जावेद मिस्बाही, वाईस प्रेसिडेंट मोहम्मद कैफ़, सेक्रेटरी मोहम्मद अनस, उर्दू मीडिया प्रभारी अज़हर नूर और हिंदी मीडिया प्रभारी अकरम हुसैन क़ादरी के अलावा अल बरकात एजुकेशन ट्रस्ट के सेक्रेटरी डॉ. अहमद मुज्तबा सिद्दीकी ने कांफ्रेस का संचालन किया.