देश की बदतर होती न्यायिक व्यवस्था की हालत का अंदाजा इस खबर से ही लगाया जा सकता है, जिसमे एक पुत्र को मौत के बाद भी अपने पिता को बेगुनाह साबित करने के लिए 14 साल की क़ानूनी जंग लड़नी पड़ी है. वह भी ऐसी स्थिति में जब पिता ने ऐसे जुर्म की सज़ा भुगती जो उन्होंने किया ही नहीं था.
गणेश जगताप ने बांबे हाई कोर्ट में अपने मृत पिता बालासाहेब जगताप के उपर लगे आरोपों को 18 साल की कड़ी मशक्कत के बाद बेबुनियाद साबित करवाया. रअसल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम करने वाले बालासाहेब को महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के एक बस कंडक्टर पर हमला करने के आरोप में तीन महीने जेल की सजा सुनाई गई थी.
पिता की मौत के बाद इस फैसले के खिलाफ बेटे गनेश जगताप ने उच्च अदालत में अपील की. कोर्ट ने कहा कि जगताप के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला. जस्टिस प्रकाश नाइक ने अपने फैसले में कहा कि पीड़ित को चोट बस से गिरने की वजह से भी आ सकती है. आरोपी और पीड़ित के बीच इससे पहले भी विवाद हो चुका था.
कोर्ट ने भी माना कि बगैर ठोस सुबूत के ट्रायल कोर्ट को जगताप को सजा नहीं देनी चाहिए थी. 21 नंवबर 1998 की इस घटना के बारे में बस कंडक्टर द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के मुताबिक, जगताप ने सतारा बस अड्डे पर कंडक्टर को धमकी दी थी.
जगताप पर यह भी आरोप लगाया गया थी कि उन्होंने कंडक्टर को मुक्का मारा, जिससे उनके सिर से खून बहने लगा. 2000 में जगताप को एक ट्रायल कोर्ट ने सजा सुनाई गई, जिसे सेशन्स कोर्ट ने 2004 में सही ठहराया.