दिल्ली की झुग्गी झोपड़ी में मिला ‘गोल्ड मेडलिस्ट’ उसैन बोल्ट निसार अहमद

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नई दिल्ली – भारत प्रतिभाओं का देश है, यहाँ कोने कोने में ऐसा हुनर छुपा है जो देश का नाम रोशन करने का माद्दा रखता है लेकिन हम लोग टीवी पर सिंगिंग और डांसिंग से हटकर कुछ नही सोच पाते, अगर खेलकूद की बात की जाए तो क्रिकेट ही सब कुछ है अगर सही से देश में हुनर की खोजबीन की जाए तो हर तरफ से ऐसे लोग मिल जायेंगे जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम कमाने में मददगार साबित होंगे.

राजधानी दिल्ली के आजादपुर इलाके की बड़ा बाग झुग्गी इन दिनों सुर्खियों में है। यह बस्ती वैसे तो रेल पटरियों के किनारे बसी है और दूसरी झुग्गियों की तरह गंदगी और सार्वजनिक सुविधाओं के अभाव से जूझ रही है। इसी बस्ती की छोटी सी एक कोठरी में रहते हैं 16 साल के तेज तर्रार धावक निसार अहमद। जिनकी कामयाबी की चमक ने इस झुग्गी को बहुत ही खास बना दिया है। इस बस्ती की बाकी महिलाओं की तरह निसार अहमद की मां भी घरों चोका बर्तन का काम करती है, पिता रिक्शा चलाते है।

संघर्ष की कहानी

निसार पांच साल के थे, जब करीब के स्कूल में उनका दाखिल हुआ। फटे बस्ते और पुरानी किताबे लेकर वह स्कूल जाने लगे। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उनके पास निसार अहमद के लिए यूनिफॉर्म और जूते खरीदने के लिए भी पैसे नही थे। तमाम अभावो के बीच भी नन्हे निसार ने कभी स्कूल जाने में आनाकानि नही की.

उसका सपना पूरा करने के लिए उन्होंने पिछले साल 28000 रुपये का कर्ज लिया। पिता मोहम्मद हक कहते हैं – धीरे धीरे कर्ज़ उतारने की कोशिश कर रहा हैं। बस एक ही सपना है की मेरा बेटा चैंपियन बने, मैं चाहता हैं कि जो दुख मैंने और इसकी मां ने सहे हैं वो वो मेरे बेटे को ना सहने पड़ें।

साल 2014 में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिला हालांकि निसार फाइनल तक नही पहुंच पाए, पिछले साल निसार ने फर्राटा दौड़ में दो गोल्ड मैडल अपने नाम किये। खास बात तो यह रही कि उन्होंने नेशनल अंडर-16 के खिलाड़ियों का रिकॉर्ड तोड़ डाला निसार ने 100 मीटर की रेस सिर्फ 10.82 सेकंड में पूरी की पुराना रिकॉर्ड 11.2 सेकंड का था 200 मीटर की दौड़ में भी निसार छाए रहे ।

पिता मोहम्मद हक कहते हैं कि मेरे बेटे ने अब तक 35 मेडल जीते हैं। सब कहते हैं बड़ा होशियार है, अच्छा लगता है जब दूसरों से उसकी तारीफ सुनता हैं। निसार ने अपनी छोटी सी कोठारी में बड़े करीने से ढेर सारे मेडल सजा कर रखे हैं। जब वह मेडल लेकर घर लौटता है तो पड़ोसी जमा हो जाते है और बधाई देते हैं। हालांकि इस कामयाबी से उनके माता पिता के जीवन में कुछ नही बदला।

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