मंगलवार को दशहरे के मौके पर गुजरात ने 2000 से ज्यादा दलितों ने हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया. गुजरात के तीन प्रमुख शहरों अहमदाबाद, कलोल और सुरेन्द्रनगर में हुए समारोह में सेकड़ों दलित बौद्ध धर्म में शामिल हुए. इस धर्म परिवर्तन के पीछे पिछले दिनों गौरक्षा के नाम पर हुई हिंसा को माना जा रहा हैं.
बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने वाले एमबीए के छात्र मौलिक चौहाण ने बीबीसी को बताया, “बचपन से मेरे मन में था कि जाति प्रथा से मुझे कब मुक्ति मिलेगी. उना कांड के बाद मैंने मन बना लिया कि अब हिन्दू धर्म का त्याग कर मुझे बौद्ध धर्म की दीक्षा लेनी है क्योंकि उसमें सभी बराबर हैं.”
कलोल में दीक्षा समारोह का आयोजन करने वाले महेन्द्र उपासक ने बीबीसी को बताया, “आप इस दीक्षा को उना कांड से जोड़ कर नहीं देख सकते. फिर भी हम मानते हैं कि अगर सभी दलित बौद्ध होते तो उना की घटना नहीं होती. हमारा मकसद यही है कि हम जाति प्रथा से मुक्ति दिलाने के लिए बौद्ध धर्म की दीक्षा देते हैं. उन्होंने आगे बताया, दीक्षा लेने वालों से उनकी जाति नहीं पूछी जाती. लेकिन वे मानते हैं कि समारोह में शामिल ज्यादातर लोग दलित समुदाय से हैं.”
टीआर भास्कर ने बीबीसी को बताया, “मैं कई वर्षों से बौद्ध धर्म से प्रभावित था क्योंकि यहां जाति से मुक्ति मिल जाती है. जिस प्रकार अंबेडकर ने भी बौद्ध धर्म स्वीकार किया था उसी प्रकार मैंने भी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली है.” बौद्ध धर्म में शामिल मौलिक चव्हाण बीबीसी से कहते हैं, “अब मैं हिंदू से बौद्ध हो गया हूं. उम्मीद है कि अब मुझे जाति प्रथा से मुक्ति मिल जाएगी.”
गुजरात बौद्ध अकादमी के रमेश बैंकर ने बीबीसी से कहा, “बौद्ध दीक्षा का समारोह किसी धर्म या जाति के खिलाफ़ नहीं है और इसका उना कांड के साथ भी कोई लेना-देना नहीं है. मैं इतना ही कह सकता हूं कि दीक्षा लेनेवाले सभी हिंदू हैं और जाति प्रथा से मुक्ति चाहते हैं.”
गुजरात भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता भरत पंड्या ने बीबीसी को बताया, “भारत में कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना सकता है फिर भी अगर दलित नाराज़ होकर या किसी के कहने पर बौद्ध धर्म में दीक्षित होते हैं तो यह ठीक नहीं है. इस पर सभी को गंभीरता से विचार करना चाहिए.”