मदरसों को लेकर प्रधानमंत्री सबका साथ-सबका विकास का नारा बुलंद करते हुए मदरसा छात्रों के एक हाथ में लैपटॉप और दुसरे हाथ में कुरान देने की बात कहते है. इसके उल्ट उनकी पार्टी शासित झारखंड में बीते 10 माह से मदरसा शिक्षकों को वेतन नहीं मिल रहा है.
राज्य के 186 अराजकीय मदरसा शिक्षकों को दस महीने से वेतन का भुगतान नहीं किया गया है. तनख़्वाह को लेकर मदरसा के शिक्षक लगातार विरोध-प्रदर्शन भी कर रहे हैं. इसी सिलिसले में पिछले महीने झारखंड की राजधानी रांची में राज्य भर से पहुंचे मदरसा के शिक्षकों ने सड़क मार्च किया था.
झारखंड मदरसा टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव हामिद गाज़ी बताते है कि ‘हालात पर ग़ौर करें, तो एक बात साफ़ है कि झारखंड में बीजेपी सरकार को मदरसे बेहद खटक रहे हैं. वो सिर्फ इसलिए कि यहां तालीम हासिल करने वाले बच्चे और पढ़ाने वाले शिक्षक दोनों मुसलमान हैं.’ उन्होंने कहा कि उन्हें यह कहने से गुरेज नहीं कि इस कौम के ग़रीब, पसमांदा, दबे-कुचले बच्चों के लिए तालीम के सालों पुराने इंतज़ाम को ख़त्म करने की साज़िश चल रही है.
वहीँ मदरसा टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सैयद फज़लुल का कहना है कि इससे पहले बीते मार्च महीने से ही वेतन का भुगतान नहीं किया गया है. होदा का आरोप है कि सरकार भेदभाव की नीति अपना रही है. उन्होंने बताया, राज्य के 186 मदरसों में शिक्षकों के 1400 पद स्वीकृत हैं. लेकिन फिलहाल 700 शिक्षक ही सेवा में बचे हैं.
झारखंड में 139 मदरसे में आठवीं तक यानी वस्तानिया की पढ़ाई होती है. जबकि 47 में मदरसा बोर्ड (फोकानिया) और मौलवी तक की पढ़ाई होती है. इन मदरसों में तालीम लेने वाले बच्चों की संख्या करीब पचास हज़ार के करीब है.