महाराष्ट्र (Maharashtra) के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के कद्दावर नेता देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis, CM of Maharashtra) को चुनाव हलफनामे में आपराधिक केस को छिपाने के मामले में जमानत मिल गई है। गुरुवार को नागपुर की जिला अदालत ने उन्हें 15 हजार के पीआर बांड पर जमानत दी है।
देवेंद्र फडणवीस के ऊपर आरोप है कि 2014 में अपने चुनावी हलफनामे (Affidavit) में आपराधिक मामलों का खुलासा अपने हलफनामे में नहीं किया। फडणवीस के खिलाफ की गई शिकायत में उन पर आपराधिक मामला चलाने की मांग की गई है। मामले में पेशी से बचने के लिए पूर्व सीएम ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है।
अदालत से बाहर आकर देवेंद्र फडणवीस ने कहा,”आज मुझे अदालत ने चुनावी हलफनामे के एक मामले में सम्मन किया था। मैं कोर्ट में हाजिर हुआ और अदालत ने पीआर बांड पर मुझे अगली तारीख दी है। और मेरी प्यार बॉन्ड की अर्जी को स्वीकृत किया है। मूल रूप से 93 से 98 के बीच के यह दो कैसे थे और हमने एक झुग्गी झोपड़ी को बचाने के लिए आंदोलन किया था। उस आंदोलन में मेरे ऊपर दो प्राइवेट केस डाले गए थे। वह कैसे सेटल भी हो गए थे, अब वह केस मेरे पर नहीं है।”
A Nagpur court grants bail to former CM and BJP leader Devendra Fadnavis on a personal bond of Rs 15,000 in connection with the matter where he allegedly did not disclose 2 pending criminal cases against him in 2014 poll affidavit. https://t.co/vxdwdkNJLm
— ANI (@ANI) February 20, 2020
फडणवीस ने आगे कहा,”मेरे ऊपर आरोप लगाया गया कि मैंने 2014 के एफिडेविट में इन मुकदमों को छिपाया। मैं लोवर कोर्ट में जीता, हाईकोर्ट में जीता लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इसे लोवर कोर्ट में सुनवाई के लिए भेज दिया इसलिए मैं वहां आज हाजिर हुआ था।”
पूर्व सीएम ने आगे कहा-“मेरे ऊपर आज तक जो भी कैसे हुए हैं वह सभी आंदोलनों में हुए हैं और कोई भी व्यक्तिगत केस नहीं है। यह सारे लोगों के कारण ही हुए हैं इसलिए उन्हें छुपाने का कोई मतलब नहीं था। अगर मैंने बाकी कैस के बारे में बताया है तो इन दो केसों को छुपाने का कोई मतलब नहीं है। मेरे वकील ने जो एफिडेविट तैयार किया है और बाकी हम अपना सारा पक्ष अदालत के सामने रखेंगे और मुझे पूरा विश्वास है कि अदालत हमें न्याय देगा।”
हालांकि, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1 अक्टूबर, 2019 को फडणवीस को झटका देते हुए कहा था कि निचली अदालत उनके खिलाफ दायर मुकदमे को नए सिरे से देखे। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए यह आदेश दिया था।