‘मांस खाने वालों पर भरोसा ना करें’


भारत के कई राज्यों में स्कूली बच्चों को जो किताबें पढ़ाई जा रही हैं उनमें कई ऐसी बातें हैं जो हास्यास्पद, शर्मनाक या मूर्खतापूर्ण हैं.

बीबीसी की आयशा परेरा बता रही हैं कि कैसे हाल के दिनों में स्कूली पाठ्यक्रम की किताबें ग़लत वजहों से चर्चा में रही हैं.

नौकरियों पर क़ब्ज़ा जमाती औरतें


छत्तीसगढ़ के एक स्कूल टीचर ने हाल ही में टेक्स्ट बुक से संबंधित एक शिकायत दर्ज की है. टेक्स्ट बुक में लिखा हुआ है कि आज़ादी के बाद देश में बेरोज़गारी बढ़ने की वजह औरतों का कई क्षेत्रों में काम करना है.

जब ‘द दाइम्स ऑफ़ इंडिया’ अख़बार ने इस मामले में छत्तीसगढ़ स्टेट काउंसिल फ़ॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग के निदेशक से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, “यह बहस का विषय है. यह लेखक के अनुभव से निकला उनका नज़रिया है.”

वो कहते हैं, “अब यह टीचर का काम है कि वे छात्रों को कैसे इसे समझाते हैं और छात्रों से पूछना कि वे इससे सहमत हैं कि नहीं.”

मांस खाने वालों पर भरोसा ना करें


2012 में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की एक टेक्स्ट बुक में लिखे इस कथन पर बवाल मच गया था कि मांस खाने वाले लोग भरोसे के लायक़ नहीं होते हैं. वे झूठ बोलते हैं, वादा तोड़ते हैं, बेईमान होते हैं और गंदे शब्द बोलते हैं. उनके बारे में यह भी लिखा गया था कि ऐसे लोग चोरी करते हैं, लड़ते हैं, हिंसक होते हैं और सेक्स अपराधों को अंजाम देते हैं.

बाद में इस संबंध में सीबीएसई के निदेशक ने समाचार चैनल एनडीटीवी से कहा था कि देश-भर में पढ़ाए जा रहे स्कूली किताबों के विषयवस्तु की समीक्षा नहीं की जाती है.

पत्नियों की तुलना गधे से


2006 में ऐसा ही एक मामला सामने आया था जिसमें राजस्थान के एक टेक्स्ट बुक में घरेलू महिलाओं की तुलना गधों से की गई थी. ‘द दाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने हिंदी भाषा में लिखे गए इस टेक्स्ट बुक के हवाले से लिखा था, “गधा एक घरेलू महिला की तरह होता है. गधा दिन भर काम करता है किसी घरेलू महिला की तरह उसे भी इसके बदले खाना और पानी मिल सकता है.”

“वाक़ई में गधे की स्थिति थोड़ी बेहतर ही लगती है. कभी-कभी घरेलू महिलाएं शिकायत भी कर सकती हैं और मायके जा सकती हैं लेकिन आप गधे को अपने मालिक के प्रति वफ़ादार नहीं होने के लिए कभी नहीं पकड़ेंगें.” एक अधिकारी ने अख़बार को इस मामले में कहा कि यह तुलना तो “अच्छे भाव से किया गया एक मज़ाक़” था.

जापान ने गिराया परमाणु बम


गुजरात में 50,000 बच्चों को पढ़ाए जाने वाले समाज विज्ञान की एक किताब में लिखा हुआ था कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान ने अमरीका पर एटम बम गिराया था.

इस किताब में मोहनदास करमचंद गांधी की पुण्यतिथि की तारीख़ भी ग़लत बताई गई थी. अधिकारियों ने इस पर कहा था कि ग़लती सुधार ली जाएगी. हालांकि उन्होंने उन किताबों को वापस लेने से मना कर दिया था जो बांटी जा चुकी हैं.

दुनिया की महत्वपूर्ण शिपिंग लेन ‘सीवेज नहर’


आप उस वक़्त अचरज में नहीं पड़ जाइएगा जब महाराष्ट्र में पढ़ने वाला कोई बच्चा आपको यह कहे कि ‘सीवेज नहर’ दुनिया की एक महत्वपूर्ण शिपिंग लेन है. अंग्रेज़ी में मौजूद राज्य के एक टेक्स्ट बुक में स्वेज़ नहर की स्पेलिंग सीवेज नहर के रूप में लिखी हुई है. इस किताब में ‘गांधी’ की स्पेलिंग ‘गांडी’ लिखी हुई थी और कई ऐतिहासिक तारीख़ें भी ग़लत लिखी हुई थीं.

समाचार चैनल एनडीटीवी ने इस ख़बर को चलाया था. एनडीटीवी ने बताया था कि इस मामले में किसी संबंधित अधिकारी से संपर्क नहीं हो पाया था.

साभार: बीबीसी हिंदी

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