इसका जबाव इस पर निर्भर है कि आप पूछ किससे रहे हैं? गुजरात पुलिस की मानें तो वो ‘एक खूंखार आतंकवादी’ था जिसे मारना जरूरी था।
गुजरात सरकार की मानें तो वह ‘आतंकवादी था जो राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की फिराक में था’। कई लोगों के लिए वह वसूली करने वाला था जो पुलिस और राजनेताओं के साथ मिलकर काम करता था और जब हाथ से निकल गया तो मार दिया गया।
एक दशक बाद अब इसे सोहराब का मुकद्दर कहें या उसकी पत्नी कौसर बी का, जो सोहराब की मौत के साथ गायब हो गई, कि आज भी यह सवाल अनसुलझा है कि क्या सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ में मारा गया था? यह वह मामला है जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई, सीआईडी, बड़े राजनेता और यहां तक कि पूरा देश काफी बातें कर चुका है।
तो मामला धीरे-धीरे इंसाफ की तरफ बढ़ रहा है या मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत में एक अंधी गली में दाखिल हो रहा है? इस मामले में दायर सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक 23 नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन और कौसर बी एक बस में हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे थे कि तभी गुजरात के आतंकवाद निरोधी दस्ते ने उनकी बस रोकी।
पुलिस सिर्फ सोहराब को बस से उतारना चाहती थी लेकिन कौसर बी अपने पति को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थीं और उसके साथ ही उतर गई।
तीन दिन बाद सीबीआई ने कहा कि कौसर बी का कथित तौर पर गला घोंटा गया और पुलिस उपायुक्त डीजी वंजारा के पैतृक गांव में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस केस से वंजारा की बहुत बदनामी हुई और उन्हें आठ साल जेल में रहना पड़ा।
इसी साल उन्हें जमानत मिल पाई। इस साल फरवरी में जब आईपीएस डीजी वंजारा जब अहमदाबाद की साबरमती जेल से निकले तो उनका नायक की तरह स्वागत हुआ। उन्हें सोहराबुद्दीन और कौसर बी की हत्या के आरोप में सजा हुई थी।
उन पर 2002 से 2006 के बीच अलग-अलग फर्जी मुठभेड़ों में नौ लोगों की हत्या का आरोप है। उस दौरान वंजारा ज्यादातर समय अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच के प्रमुख थे, जो तब से बहुत बदनाम रही है।
वंजारा ने जेल में रहते हुए तीन किताबें भी लिखीं जो ज्यादातर उनके गुरु आसाराम बापू को समर्पित हैं। उन्होंने जेल में रहते हुए ही मोदी की गुजरात सरकार पर ‘तीन खतों के बम’ भी दागे। खुद को राष्ट्रवादी हिंदू बताते हुए वंजारा ने मोदी को बताया कि ‘उनके किए काम से ही उन्हें राजनीतिक फायदा मिला’।
पत्रों में उन्होंने मोदी का दायां हाथ कहे जाने वाले अमित शाह को दुष्ट प्रभाव तक कह दिया। अभी शाह भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं। यह वही अमित शाह हैं जिनकी मुठभेड़ के समय वंजारा और अन्य अभियुक्त पुलिसवालों से 300 बार फोन पर बात हुई।
दिसंबर 2014 में एक नाटकीय फैसला लेते हुए मुंबई की एक अदालत ने मुकदमा शुरू होने से पहले ही सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह के खिलाफ सभी आरोप खारिज कर दिए। शाह इस मामले के 37 अभियुक्तों में एक थे। अन्य अभियुक्तों में राजस्थान के भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया और ओपी माथुर शामिल थे।
शाह को 2010 में गिरफ्तार कर रिमांड पर भेजा गया था। सीबीआई ने उन पर वसूली गिरोह चलाने और राजस्थान की मार्बल लॉबी के दबाव में सोहराबुद्दीन को मरवाने का आरोप लगाया। शाह ने अपनी पैरवी के लिए राम जेठमलानी जैसे बड़े वकील को लगाया।
भाजपा में कई लोग कहते हैं कि शाह के सियासी करियर के लिए सोहराबुद्दीन को अपनी बलि देनी पड़ी। जैसे-जैसे ये मामला सुर्खियों में आया, शाह का कद भाजपा में बढ़ता गया और अब वह भाजपा में मोदी के बाद दूसरे सबसे ताकतवर नेता हैं।
इस पत्र के बाद पहले गुजरात की सीआईडी ने मामले की जांच शुरू की जिसे बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया।जांच में पता चला कि जिस कारनामे के लिए गुजरात पुलिस को सम्मानित किया गया, वह असल में सोची-समझी हत्या थी। दो लोगों की हत्या, जिनमें एक आपराधिक पृष्ठभूमि वाला था, जबकि दूसरी उसकी पत्नी थी, जो मुश्किल में भी अपने पति का साथ नहीं छोड़ना चाहती थी।
उज्जैन में रहने वाले रुबाबुद्दीन कहते हैं कि उन पर लगातार दबाव रहा है। उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया कि अगर वह याचिका वापस न लेते तो उन्हें मार दिया जाता।
दस साल बाद उनका कहना है, “मैं इंसाफ के लिए लड़ते-लड़ते थक गया हूं। कोई उम्मीद नहीं बची है। मेरा भाई और उसकी बीवी तो मर गए लेकिन मेरी पत्नी और बच्चे जिंदा हैं। कम से कम अब मैं डरा हुआ हूं और इस मामले को छोड़ रहा हूं।”