फ़र्ज़ के पक्के और ईमान के सच्चे थे जाबाज़ तंज़ील अहमद

पिछले साल जब मैंने जामिया थाना ज्वाइन किया तो मेरे नवीं से बारहवीं क्लास तक मुस्लिम क़ुदरत इंटरमीडिएट कॉलेज, स्योहारा(बिजनौर) में साथ पढ़ने वाले साथी Nabeel Ahmad मूलनिवासी सहसपुर(बिजनौर) जो कि ज़ाकिर नगर के निवासी हैं से मुलाक़ात लाज़मी तौर पर हुई क्यूंकि ट्रांसफर के होते हुए ही यह ख़ुशी हो रही थी कि अब अपने सभी हमवतनों से खूब मुलाक़ात रहेगी। जामिया नगर जिसमे मुख्य रूप से ज़ाकिर नगर, बटला हाउस, नूर नगर, ग़फ़्फ़ार मंज़िल, अबुल फज़ल एंक्लेव व शाहीन बाग़ शामिल है में रहने वाली आबादी में करीब सत्तर फीसद लोग पश्चिमी उत्तर प्रदेश मतलब मुझ जैसे लोगों में से हैं। रमजान में इफ्तार की दावत पर तंज़ील भाई से नबील के घर मुलाक़ात हुई करीब बत्तीस साल बाद अपने सीनियर अंडर ऑफिसर से रूबरू था बस वक़्त की ज़्यादती ज्यादा और सर के बालों की कम कमी का फर्क था अदरवाइज़ तंजील भाई की फिटनेस और शारीरिक लचक वही की वही थी जो मैंने कालागढ़ के एनुअल ट्रेनिंग केम्प में क्रॉस कंट्री में देख रखी थी. हर्षवर्धन शर्मा उर्फ़ Titony जी आपको भी खूब याद होगा. वो थोडा लेट आये थे जल्दी से गले मिलकर कई औक़ात की नमाज़ें इकठ्ठा फ़टाफ़ट पढ़ डाली. फिर नसीहत दी कि नमाज़ कसरत से पढ़ा करो. उसके बाद लगातार तनज़ील भाई से फ़ोन पर लगातार बात होती रही और एक दो बार मुलाकातें भी.


कल सुबह नबील के फ़ोन से आँख खुली . मैं सपत्नीक अपनी ससुराल सिहाली जागीर(हसनपुर) गाँव में मौजूद था कल अपने चचेरे भाई के वलीमे में शिरकत करने अपने गाँव ऊमरी-कलाँ(मुरादाबाद) जाना था. सो पुलिस की नौकरी में राशन से मिलने वाली एक प्लस एक छुट्टी की पहली रात पत्नी के मायके में बिताना शिड्यूल्ड थी. शुरू में नबील की आवाज़ और लहजा समझ में नहीं आया. अस्पष्ट ‘तनज़ील भाई-इक्कीस फायर-मर्डर-इंतकाल शब्दों से दिमाग़ जागा फिर तो शरीर जमता सा चला गया यूँ तो पुलिस की करीब इक्कीस साला नौकरी में इन शब्दों से खूब वास्ता रहा है मगर जैसे जैसे डिटेल मिलती गयी मैंने तनज़ील भाई की जगह खुद को और उनकी फेमिली की जगह खुद की फैमली को रखना शुरू कर दिया.


हमारी जातीय, आर्थिक, क्षेत्रीय और सामाजिक पहचान एक ही है. तंज़ील भाई और उनसे बड़े राग़िब भाई दोनों इंट्रेस्टिंगली एक ही क्लास में थे और मुझसे एक क्लास आगे थे. सन पिचासी में वह बारहवीं कर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढने चले गए. अगले साल नबील भी दिल्ली पहुँच गए. मैं और शबाहत (अन्य सहस्पुरिया) हिन्दू कालेज, मुरादाबाद में बीएससी में पढने लगे . तब पढाई और नौकरी में आजकल की तरह सिक्यूरिटी और वर्सटैलिटी नहीं थी मेडिकल और इंजीनियरिंग के इलावा बहुत कम विकल्प थे. पढ़ते पढ़ते सरकारी नौकरी पकड़ना ही अभीष्ट ध्येय होता था . हमारे सीनियर्स में सहसपुर के ही ग़ाज़ी भाई का सिलेक्शन एयरमैन के रूप में हुआ था और मेरे एक साथी रईस की भर्ती सीआईएसऍफ़ में हो गयी थी . सन बयानवे में पता चला कि तंज़ील भाई बीएसऍफ़ में सब-इन्स्पेक्टर सेलेक्ट हो गए हैं . बड़ा अच्छा लगा. अगले साल मैं भी लॉ को बीच में छोड़कर एमसीडी में प्राइमरी टीचर हो गया. उपरोक्त हम सभी की बेकग्राउंड एनसीसी की थी. कहीं न कहीं खलिश थी जो दो बरस बाद दिल्ली पुलिस में सब-इन्स्पेक्टर बन कर पूरी हो गयी. तब एक बार नबील के साथ मेरी मुलाक़ात तंजील भाई से सिव्हारा के निकलने के बाद हुई थी. बड़े खुश हुए थे कहा था शुएब तुमने मेरी ख्वाहिश पूरी करी है.


एम्क्यू इंटर कॉलिज हमारा एल्मा-मेटर रहा है. आठवें दशक के शुरुआत में मैंने उसमे आठवीं कक्षा में दाखिला लिया था. तब हमारी फेमिली देहरादून के खूबसूरत शहर से स्योहारा शिफ्ट हुई थी. सहसपुर स्योहारा कस्बे का सेटेलाईट कस्बा है उस वक़्त सहसपुर में सिर्फ दसवीं तक का ही पब्लिक हायर सेकेंडरी स्कूल था और वह भी आर्ट्स साइड वाला. सो साइंस वाले स्टूडेंट्स नवीं से और आर्ट वाले बच्चे फर्स्ट ईयर(ग्यारहवीं) स्योहारा में दाखिला लेते थे. तब सहसपुर से आने वालों का ऐसा स्टाइल होता था कि जैसे वह अलीगढ़ पढने आयें हों . फुल फॉर्मल ड्रेसिंग के साथ और फुल जेबखर्च के साथ. स्योहारा और सहसपुर के लड़कों में आपस में गेंगवार भी चलती थीं . सारी यादें फिल्म के फ्लेश बैक की तरह चल रही है :-
दर्द की बारिश सही मद्धम ज़रा आहिस्ता चल
दिल की मिटटी है अभी तक नम, ज़राआहिस्ता चल
मुमताज़ राशिद


करीब साथ-आठ साल पहले वह एनआईए के गठन के बाद डेपुटेशन पर उसमे आ गए. बाक़ी आप सब लोगों को मालूम है .
फूल में कितना वज़न है, शूल में कितनी चुभन है
यह बताएँगे तुम्हें वे, लुट गया जिनका चमन है
(वीरेंद्र मिश्र)


इस सानिहे के बहाने मुझे एमक्यू के अपने सारे सीनियर्स याद आ रहे हैं, Kanta Pushpak भाई,Javed Shams भाई Usman Ali Artist भाई, कमरुल भाई और तो और जिस स्कूल के सीसीटीवी के केमरों में तंजील भाई के मशकूक कातिलों के मुबहम साए क़ैद हुए हैं उसमे भी Mairaj भाई प्रिंसिपल हैं . ख़बरों में स्योहारा का थाना दिखाया जा रहा है उसकी कोत में एनसीसी की परेड के लिए राइफलें रखते-निकालते हुए तंजील भाई, हर्षवर्धन, शबाहत और अन्य साथियों के साथ दिखाई दे रहें हैं .


कोई किसी की तरफ है कोई किसी तरफ
कहाँ हैं शहर में अब कोई, ज़िन्दगी की तरफ
निदा फाजली


बस एक सवाल तंजील भाई के साथ पीछे छूट रहा है. इस मुल्क और समाज को अक्षुण रखने में परदे के पीछे और सामने प्रयास रत मेरे जैसे लोग कितने महफूज़ हैं अपने परिवार के साथ.


पुनश्च: Dilnawaz Pasha साहब को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने कहा कि तंजील भाई के बारे में लिखो . किसी परिजन के बारे में लिखना बहुत कठिन होता है. हैं न Ali Arif Siddiqui भाई Varun Pratap Singh और Tariq ? एक बात और क्या पता किसी दिन हमारी भी फेसबुक पर सिर्फ आई डी रह जाए . तो दोस्तों
जाने वालों से राबिता रखना — दोस्तों रस्मे फातिहा रखना

सुहैब अहमद फारुकी

ये लेख दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर  Suhaib Ahmad Farooqui की फेसबुक वाल से लिया गया है

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