
भारत में 2006 से 2008 तक हुए बम धमाकों की छह घटनाओं में 120 से ज़्यादा लोग मारे गए और क़रीब 400 घायल हुए थे.
प्रारंभिक जांच में इन बम धमाकों में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जुड़े लोगों के नाम सामने आए थे.
ये घटनाएँ ‘भगवा आतंक’ या ‘हिंदू चरमपंथ’ के नाम से चर्चित हुईं.
लेकिन आज तक इनमें से किसी भी मामले में किसी को भी दोषी क़रार नहीं दिया जा सका है.
इन सभी मामलों की जांच भारत की प्रमुख एजेंसी एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी कर रही है.
बीबीसी की इस विशेष सीरीज़ की चौथी क़िस्त में पढ़ें 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर शरीफ़ दरगाह में हुए धमाके के बारे में.
2007 अजमेर शरीफ़ धमाका

11 अक्टूबर 2007 को इफ़्तार के दौरान अजमेर शरीफ़ दरगाह में एक धमाका हुआ, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई और 15 घायल हो गए.
22 अक्टूबर 2010 को राजस्थान की आतंक निरोधी दस्ता (एटीएस) ने पांच लोगों को अभियुक्त बनाया. एजेंसी ने दावा किया कि इनमें चार ने खुद को आरएसएस से जुड़ा बताया.
एटीएस ने 30 गवाहों के बयान दर्ज किए जिनमें 15 ने एक मजिस्ट्रेट के सामने बयान भी दिए.
आरएसएस से संबंध

राजस्थान एटीएस और मक्का मस्जिद धमाकों की जांच कर रही सीबीआई का कहना था कि अजमेर धमाके में हिंदू चरमपंथी संगठन ‘अभिनव भारत’ के हाथ होने के सुराग मिले थे.
राजस्थान एटीएस का आरोप था कि अजमेर धमाके के संदिग्धों से आरएसएस के बड़े नेताओं के संबंध पाए गए, लेकिन इसे साबित नहीं किया जा सका.
अप्रैल 2011 में इस मामले को एनआईए को सौंप दिया गया.
एनआईए ने क्या किया?

दक्षिणपंथी हिंदू कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ यह मजबूत मामला, अब कमज़ोर हो गया लगता है.
एनआईए ने इस मामले में तीन सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की और जयपुर में एनआईए की विशेष अदालत ने आरोप तय किए.
लेकिन अभी सुनवाई शुरू भी नहीं हुई और 15 अहम गवाहों में से 14 अपने बयान से पलट गए.
जांच में खाली हाथ

जिन 13 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई थी, उनमें से चार अब भी फ़रार हैं और एक को ज़मानत मिल गई है.
अन्य मामलों की तरह इसमें भी एनआईए को उससे ज़्यादा कुछ नहीं मिला, जितना राजस्थान एटीएस की जांच में मिला था.
आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार और कर्नल पुरोहित की भूमिका के बारे में अब तक कुछ नहीं पता चल पाया है.