ये आरोप बार-बार लगते रहे हैं कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से अल्पसंख्यकों पर हिंसक हमलों के मामले बढ़े हैं.
अमरीकी संस्था युनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजस फ्रीडम ने भी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दौर में अल्पसंख्यकों पर ‘हिंसक हमले’ बढ़े हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, “2014 के चुनाव के बाद, धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से जुड़े नेताओं की ओर से भड़काऊ बयान सुनाए गए हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों की ओर से कई हिंसक हमले और जबरन धर्म परिवर्तन करवाया गया है.”
बीबीसी ने अल्पसंख्यक समुदायों से मुलाकात कर ऐसे दावों की सच्चाई जानने की कोशिश की. पढ़ें विशेष रिपोर्ट.
प्रदर्शन

दिल्ली से 200 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के कैराना के रहनेवाले दीन अब शायद कभी ना चल पाएं.
गोली लगने की वजह से 18 साल के दीन मोहम्मद को कमर के नीचे फ़ालिज मार गया. अब वो बात करते हैं तो आवाज़ कांपती है. कुछ डर से, कुछ दुख से.
वो कहते हैं, “मुसलमानों पर दिल्ली से शामली आनेवाली ट्रेनों पर हमले हो रहे थे, और पुलिस किसी को गिरफ़्तार नहीं कर रही थी, इसी रवैए के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए हमारे गांव से भी लोग गए और प्रदर्शन हुआ.”
“मैं रुक कर देखने लगा कि अचानक मुझपर पुलिस की गाड़ी में से गोली चली, मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया. मैं लड़खड़ाया और मुझे खून की उल्टी होने लगी.”

दीन के जीजा, मोहम्मद जमशेद के मुताबिक़ मुसलमानों के मन में ख़ौफ़ पैदा करने की इन कोशिशों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा.
वो कहते हैं, “जैसे दो साल पहले मुज़फ्फरनगर में हुआ था, फिर हो रहा है. कुछ हिंदू इतनी दहशत फैला रहे हैं कि मुसलमान परिवारों को उनके गांव छोड़ने पड़ें. सरकार अब भी कुछ नहीं कर रही, ना ही पुलिस, हमें तो सिर्फ ख़ुदा से आस है.”
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार है और क़ानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी सीधे तौर पर सूबे की हुकूमत की होती है.
भेदभाव की ऐसी शिकायतें उन इलाक़ों में सबसे ज़्यादा सुनाई दे रही हैं जहां मुसलमानों की संख्या कम है, जैसे पास के शहर शामली में.
26 साल के दिहाड़ी मज़दूर, फैज़ान, दिल्ली से ट्रेन से लौट रहे थे जब उन्हें लाठियों से पीटा गया और उनके गुप्तांगों पर गहरी चोटें आईं. वो दाढ़ी रखते हैं इसलिए मुसलमान के तौर पर उनकी पहचान आसानी से हो जाती है.
बुरा सुलूक

वो बताते हैं, “कुछ 10-12 हिंदू लड़के ट्रेन में चढ़े, मैं दाढ़ी रखता हूं और टोपी पहनता हूं तो मुसलमान के तौर पर पहचान आसानी से हो जाती है, तो मुझे देखकर बोले – ये रहा मुल्ला, इसको पकड़ो – और बेरहमी से पीटने लगे, मेरी दाढ़ी नोच ली, पैसे लूट लिए.”
फैज़ान के मुताबिक़ उनकी शिकायत पर अबतक किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई है और अब उन्हें बाहर निकलने में भी डर लगता है कि कहीं फिर ऐसा ना हो जाए.
फैज़ान के पास जुटे लोग बताते हैं कि पिछले साल में मुसलमानों पर ट्रेनों, बसों और सार्वजनिक जगहों पर हमलों के कई मामले सामने आए हैं. समुदाय को लगता है कि कोई सुने तो उनके पास कहने को बहुत कुछ है.

वो कहते हैं, “मोदी सरकार के दौर में मुसलमानों के साथ सबसे बुरा सुलूक हुआ है. माहौल इतना बुरा कभी नहीं था. हम इस पार्टी को कभी वोट नहीं देंगे.”
“जब केंद्र सरकार के मंत्री ही मुसलमानों के ख़िलाफ़ भड़काऊ बयान देते हैं, तो हम मुसलमानों को लगता है कि हमारी भावनाओं के साथ खेला जा रहा है.”
“हम भी इस देश में पैदा हुए हैं, बाकि़ नागरिकों कि तरह हमें भी सुरक्षा का अहसास होना चाहिए. पर मोदी सरकार के दौर में स्थानीय हिंदू संगठनों को बहुत बल मिला है और तबसे चीज़ें बहुत बदल गईं हैं.”
शिकायत

बीबीसी ने जब ये शिकायतें अल्पसंख्यक राज्य मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी के सामने रखीं तो उन्होंने माना कि हर धार्मिक समुदाय में कुछ “सिरफिरे गुट” होते हैं और वो हमेशा रहेंगे.
मुख्तार अब्बास नक़वी से पूरी बातचीत सुनने के लिए यहां क्लिक करें
उन्होंने कहा, “पिछले एक साल में देश में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ है, केंद्र सरकार तो इसके लिए वचनबद्ध है ही, हमने सभी राज्य सरकारों को भी ख़ास हिदायत दी है कि अल्पसंख्यकों पर किसी भी हमले को अंज़ाम देनेवालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए.”
नक़वी के मुताबिक़ इक्का-दुक्का हमले की वारदात को लेकर सरकार के काम को नहीं तौलना चाहिए.
हालांकि पिछले साल में सरकार के मंत्रियों की तरफ़ से आए बयानों, जैसे “हर हिंदू औरत को चार बच्चे करने चाहिए ताकि हिंदुओं का प्रभुत्व बना रहे” और “राजधानी को राम-ज़ादे चलाएंगे या हराम-ज़ादे?”, के लिए उनके पास कोई सफ़ाई नहीं थी.

और ऐसी चिंताएं गांवों तक ही सीमित नहीं हैं. राजधानी दिल्ली में, पिछले साल के दौरान पांच चर्चों पर हमला हुआ.
दिसंबर में आग लगने पर सेंट सेबैस्टियन चर्च बुरे तरीक़े से तहस नहस हो गया. चर्च के पादरी ऐंथनी फ्रांसिस का दावा है कि ये आग शॉर्ट सर्केिट की वजह से नहीं लगी बल्कि ये हमला था. पर उनके मुताबिक़ उनके सबूतों में पुलिस की कोई रुचि नहीं दिखाई.
उनके मुताबिक़, “मैंने पुलिस को कहा कि इलाके़ के हिन्दूवादी संगठनों से पूछताछ की जानी चाहिए, तो उन्होनें मुझे कहा कि इसका कोई फ़ायदा नहीं क्योंकि वो कुछ कबूलेंगे थोड़े ही.”
इस मामले की तहक़ीक़ात दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपी गई है और उन्होंने अभी तक कोई गिरफ़्तारी नहीं की है, हालांकि उनका कहना है कि वो हर दिशा में जांच कर रहे हैं.
भविष्य

पादरी फ्रांसिस का मानना है कि पुलिस ऐसे लोगों को पकड़ कर केंद्र की सरकार को शर्मसार नहीं करना चाहेगी, इसीलिए कोई क़दम नहीं उठाती.
ऐसी शंका भरी आवाज़ें जब बहुत बुलंद होने लगीं तो आख़िरकार इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार देश के चिंतित अल्पसंख्यकों से सीधे बात की.
दिल्ली में ईसाई समुदाय के एक प्रोग्राम में उन्होंने कहा, “मेरी सरकार किसी भी धार्मिक संगठन को, किसी के खिलाफ़ हिंसा भड़काने नहीं देगी, फिर चाहे वो अल्पसंख्यक समुदाय का हो या बहुसंख्यक.”
पर उनके आश्वासन से सब संतुष्ट नहीं हैं.
लेखिका अरुंधति रॉय के मुताबिक सिर्फ अल्पसंख्यकों पर हमले नहीं हो रहे हैं बल्कि सामाजिक तानाबाने में परिवर्तन लाया जा रहा है.
अरुंधति रॉय से पूरी बातचीत सुनने के लिए यहां क्लिक करें

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “एक बहुत सुनोजियत ढंग से ये बदलाव लाया जा रहा है, अदालतों में, खुफिया तंत्र में, विश्वविद्यालयों में. ख़तरा सिर्फ़ मुसलमानों, इसाईयों या आदिवासियों पर नहीं बल्कि उन सबपर है जो इसके ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाने की कोशिश करते हैं.”
सेंट सेबैस्टियन चर्च की जली हुई इमारत के पास सफेद टेंट के नीचे और कम्यूनिटी सेंटर में प्रभु यीशु की प्रार्थना अब भी जारी है.
पादरी ऐंथनी फ्रांसिस के मुताबिक़ नई इमारत तो समय के साथ बन जाएगी पर देश में टूटते रिश्तों को जोड़ना शायद उतना आसान ना हो.
वो कहते हैं, “ये चर्च को नहीं संविधान को जलाए जाने जैसा था. अगर भारत हिंदू राष्ट्र बन गया, और पाकिस्तान की तर्ज़ पर चल पड़ा और अल्पसंख्यकों को दबाने के लिए ईश-निंदा जैसे क़ानून बना दिए गए तो हमारे देश का भविष्य कैसा होगा?”
खबर साभार – बीबीसी हिंदी