जैगम मुर्तज़ा
वायनाड को लेकर संघ ने एक मैसेज किया कि वहां मुस्लिम आबादी 52 फीसदी है. फ़र्ज़ी क्रांतिकारी, टुच्चे ट्रॉल, जवानी क़ुरबान गैंग और ठेकेदार मंडली टूट पड़ी. किसी ने अपने स्तर पर जानकारी जुटाने की कोशिश नहीं की. कह दिया कि एक मुसलमान सीट और कम कर दी.
बहरहाल, 2011 की जनगणना के मुताबिक़ वायनाड ज़िले की कल 8 लाख 17 हज़ार की आबादी में 49.48% हिंदू, 28.65% मुसलमान और 21.34% ईसाई हैं. संघ ने लिखा 50 फीसदी से ज़्यादा माइनारिटी और आपने मान लिया अल्पसंख्यक मतलब मुसलमान. आपकी तालीम और कमइल्मी को लेकर जो सवाल उठते हैं आप अक्सर अपनी हरकतों से उनकी तस्दीक़ कर देते हैं.
इस सीट पर 2014 में एक मुस्लिम उम्मीदवार जीता और आपने मान लिया कि ये मुस्लिम बहुल सीट है. जबकि कांग्रेस के सीटिंग एमपी को ईसाई और हिंदू वोट ख़ासी तादाद में मिले. केरल में आपकी हिंदू मुस्लिम राजनीति ज़रा देर से पहुंची है. संघ पिछले पांच साल से वहां मेहनत कर रहा है. इसके लिए कुछ मुसलमान नाम वाले हायर किए गए हैं. आप मुस्लिम, मुस्लिम चिल्लाईए… बाक़ी किसी सीट पर फिर हिंदू वोटर किसी मुसलमान को वोट नहीं देंगे.
याद कीजिए, आपकी इस टुच्ची राजनीति से पहले जम्मू कश्मीर के बाहर देश में तीन बार मुस्लिम मुख्यमंत्री बन चुके हैं. क्या अब आप उम्मीद कर सकते हैं कि महाराष्ट्र, असम या राजस्थान में कभी कोई मुसलमान सीएम बनेगा? मैं कर सकता हूं बशर्ते राजनीति वापस 1970 के दशक में लौटे और उस समये से पीछे जाए जब अब्दुल्ला बुख़ारी जैसों ने जनसंघ के लिए प्रचार करना शुरू किया. मुसलमान फिर्क़ा फिर्क़ा खेलने लगे.
बहरहाल, ये पहली बार नहीं हुआ है जब संघी और मुसंघियों ने एक ही फ़र्ज़ी जानकारी एक साथ इतना शेयर की कि वो ट्रेंड कर गई. आपमें अगर किसी का एक्सेस है या आईपी एड्रेस खोज सकते हैं तो पाएंगे कि अक्सर इनका ऑरिजिन एक ही होता है. राज्य सभा टीवी मे रहते एक बार 37 आईपी एड्रेस एक्सेस किए थे. मौजज़न सभी मैसेज लक्ष्मी नगर के एक ही आईपी से आरिजिनेट हुए थे. इनकी भाषा तक़रीबन एक थी बस हिंदू आईडी से हिंदू के पक्ष में और मुस्लिम आईडी से मुसलमान के पक्ष में.
मेरे एक अज़ीज़ हैं. ओमान में रहते थे. 2014 के चुनाव में बीजेपी के पेड ट्रॉल थे. नौगांवा सादात के एक और मित्र सऊदी अरब में बैठकर मुसलमानो के पक्ष में ट्रॉल करते थे. ऐसे और भी कई हैं तो ऐसे और भी कई हैं. एक शाखा में बैठकर मुसलमानों के धर्मशास्त्र लिख रहे थे.
आजकल सीन से ग़ायब हैं.
एक मुसलमान परस्त मौलाना थे. हरियाणा में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के ट्रेनिंग कैंप में टकरा गए. आज तक नज़र नहीं मिलाते हैं.
तो भैया भेड़ बनिए मगर अपने बीच के भेड़ियों से भी होशियार रहिए. कई क्रांतिकारी हैं जिनकी रोटियां इसी से चल रही हैं. कुछ राजनीतिक पार्टी से, कुछ किसी व्यवसायिक कंपनी से और कुछ किसी धार्मिक तंज़ीम से पैसा पा रहे हैं. एजेंडा सबका एक है. पोस्ट पढ़कर अगर आप एजेंडा नहीं भांप रहे हैं तो आप या तो निरे मूर्ख हैं या फिर बहुत ही शातिर. अल्लाह अल्लाह ख़ैर सल्लाह…
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