आखिर क्यों अन्य राष्ट्रों को उत्तर कोरिया के विनाश में दिलचस्पी है?

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शिखा अपराजिता

अमेरिका द्वारा तबाह होने से पहले ईराक़ और लीबिया के लोगों का जीवनस्तर और नहीं तो दक्षिण यूरोपीय देशों पुर्तगाल-स्पेन की टक्कर का हुआ करता था । तबाह करने के बाद तीसरी दुनिया सी स्थिति हो गई है ।

महिलाएं जो पढ़ती थी, दफ्तर जाती थी, खेलकूद में भाग लेती थी, अकादमिक से लेकर प्रशासनिक क्षेत्र में मजबूती से तैनात थी, अमेरिकी तबाही के बाद बहुत छोटे समय के बीच कट्टरपंथ की जंजीरों में, बुरखों में कैद कर ली गई हैं ।

बाकी माहौल वैसा ही बनाया गया था दुनिया में गद्दाफी के खिलाफ जैसा आज किम जॉन्ग उन के बारे में उत्तर कोरिया के बारे में बनाया जा रहा है ।

किम आदमखोर है, नाश्ते में एक गिलास ठंडा खून पीता है, रोज रात इंसानी गोश्त खाता है, हर अमावस्या की रात उसके दांत और नाखून बड़े हो जाते हैं और सींग उग आते हैं, इत्यादि इत्यादि । ये खबरें आपके पास जिन आधिकारिक अनाधिकारिक स्रोतों से पहुँच रही हैं उन राष्ट्रों की उत्तर कोरिया की तबाही में क्या दिलचस्पी है, खबरें पढ़ने के साथ ये भी ध्यान रखें । सद्दाम के पास weapons of mass destruction होने, रासायनिक व जैविक हथियार होने की एक से एक डिटेल रिपोर्ट बीबीसी, न्यू यॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, cnn, सब दिन रात चलाते थे । अंत में ऐसा कुछ नहीं मिला । पिछले साल तो ब्रिटेन की जांच कमिटी ने इस निरर्थक युद्ध में एक देश को तबाह करने और दस लाख इराकी लोगों की हत्या के लिए प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर को दोषी पाया ।

ठीक इसी तरह गद्दाफी की सेक्युलर सरकार को बलपूर्वक पलटकर कट्टरपंथी वर्चस्व कायम किया । अब उत्तर कोरिया स्कैनर के रेंज में है । भारत सहित दुनिया भर का मीडिया वहां की गरीबी भुखमरी के जप कर रहा है । लेकिन आंकड़ों पर बात करें तो उत्तर कोरिया सबसे अच्छे नहीं तो सबसे बुरे पायदान पर भी नहीं है । कुपोषण, गरीबी, स्वास्थ्य के आंकड़े एशिया में उसे एक ठीक ठाक पायदान पर रखते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, आदि से कहीं बेहतर है । वहाँ के शासन को क्रूर राक्षसी आदि बताया जाता है और ये सब प्रोपेगंडा किसी गंभीर अकादमिक मंच से नहीं, कॉमेडी शोज, कार्टून, फेसबुक, ब्लॉग दुअन्नी चवन्नी वेबसाइट के ज़रिए फैलाया जाता है । क्योंकि गंभीर अकादमिक व मीडिया मंच पर, बीबीसी आदि के अनेकों दावों को उत्तर कोरिया ने कई बार सबूत सहित झूठा और नंगा साबित किया है । बाकी अगर उनमें कुछ सच्चाई रही भी हो तो उससे निपटने का काम वहाँ की जनता का है जो फिलहाल मजबूती के साथ सत्ताधारी पार्टी के साथ खड़ी है ।

रही मिसाइल टेस्ट, परमाणु टेस्ट की बात, तो जिस देश ने 1950-53 में हुए अमेरिकी साम्राज्यवादी हमले में अपनी तिहाई आबादी खोकर अपनी संप्रभुता की रक्षा की, जिसे तबाह करने के बाद दुनिया का एकमात्र परमाणु हत्याकांड को अंजाम दे चुका मुल्क लगातार अपने सैन्य दस्ते , टैंक और अस्त्र शस्त्र लेकर कठपुतली दक्षिण कोरिया सरकार के साथ मिलकर सीमा पर छह दशकों से खूंटा गाड़े बैठा हो, नाजायज़ पड़ोसी मुल्क दक्षिण कोरिया के भूभाग को दुनिया की सबसे बड़ी विदेशी सैन्य छावनी बना चुका हो, ऐसे में उत्तर कोरिया को अपनी रक्षा के लिए परमाणु शस्त्र बनाने का पूरा हक है । ताकि उसका भी हश्र लीबिया ,ईराक़, वियतनाम जैसा न हो ।

नोट – यह लेख शिखा अपराजिता की फेसबुक वाल से लिया गया है,

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