नई दिल्ली: कल एक खबर आई थी कि कश्मीर में अलगाववादियों ने यूएन ऑफिस के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। परसों कांग्रेस ने और पठानकोट में आम लोगों ने पठानकोट आतंकी हमले पर विरोध प्रदर्शन किया। मुजफ्फरपुर में एक आदमी को गोली मार दी गई, घरवाले पुलिस स्टेशन के सामने धरने पर बैठ गए। कुछ दिन पहले बांदा के बदहाल किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया।
इनमें से कौन सी खबर है जो चैनलों ने दिखाई? कोई भी नहीं। आप में से कोई सवाल पूछने आया? नहीं। मैं बता देती हूं कि क्यों नहीं। मालदा घटना की कवरेज पर जो लोग सवाल पूछ रहे हैं, वह इसलिए नहीं कि आप एक सजग नागरिक हैं और पत्रकारिता के गिरते स्तर को सुधारना चाहते हैं। बिलकुल भी नहीं। दरअसल आप एक सांप्रदायिक इंसान हैं जो इस घटना की कवरेज को अपने मन-मुताबिक किलो-किलो तौलना चाहते हैं।
मुसलमान सड़कों पर उतर आए क्योंकि उनके पूज्य पर एक आदमी ने ऐसी टिप्पणी कर दी जो उन्हें नागवार गुजरी। अब जब वह आदमी पुलिस की गिरफ्त में है तो प्रदर्शनकारी किस वजह से इतना वक्त जाया कर रहे हैं, यह समझ के बाहर है। यह विरोध उतना ही बेवकूफाना है जैसे पीके फिल्म का विरोध। जैसे आमिर खान को थप्पड़ मारने पर इनाम रखने का बयान। ऐसे सभी विरोधों की कवरेज होनी ही नहीं चाहिए। लेकिन आप क्यों ऐसी ही कवरेज के लिए जीभ लटकाए बैठे हैं?
यह विरोध प्रदर्शन एक बस ड्राइवर से कहा-सुनी में बदलता है। कहा-सुनी से हिंसा में बदलता है। जरूर इस पर कुछ लिखा जाना चाहिए कि प्रशासन क्या कर रहा है? लेकिन आप चाहते हैं अपने सांप्रदायिक मन का तुष्टिकरण। तो वो वहां के लोकल नेता अपने बयानों से जरूर करेंगे क्योंकि यह उनकी राजनीति है। ऐसी राजनीति की मशाल आप जैसे लोगों की बदौलत ही तो जल रही है।
फिलहाल कहीं से भी यह खबर नहीं आई है कि यह हिंसा सांप्रदायिक थी। ऐसे में क्या हो, आपके मन को सुकून कैसे मिले। चलिए दो-तीन एंटी-इंडियन चैनल ढूंढते हैं जो इस खबर पर पूरे दिन डिबेट नहीं कर रहे।
आप कभी नहीं पूछेंगे कि हमें देखना है कि कितने किसान खेती छोड़ रहे हैं। आपको फ़िक्र नहीं है, जबकि आपकी रोटी वहां से आती है, आपका कपड़ा वहां से आता है। इस देश में इतनी जगह दंगे हुए, घर उजड़े, उन लोगों का क्या हुआ, आपने पूछा कि उन्हें न्याय मिला या नहीं। आपको फिक्र नहीं है जबकि अगला मकान आपका भी हो सकता है। ऐसा मत सोचिएगा कि आप सुरक्षित हैं। जंगल की आग में हर पेड़ चपेट में आता है।
खबर NDTV पर सर्वप्रिया सांगवान का लेख