मुसलमान गद्दार, दुश्मन पाकिस्तान! भाजपा व संघी अच्छी तरह यह जानते हैं कि यह बात सरासर झूठ व निराधार है। फिर भी वो अपना राजनीतिक स्वार्थ साधने और भावुक हिंदुओं को अपना वोट बैंक बनाने के लिए इसे गांवों, मोहल्लों व कस्बों तक फैला रहे हैं। ऊपर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बिके हुए एंकर भी इस स्वार्थसिद्धि में भाजपा का साथ दे रहे हैं।
कोई सोचने को तैयार नहीं कि भारत के सामने पाकिस्तान की कोई औकात नहीं। आतंकवाद और घुसपैठ का खेल पाकिस्तान व भारत की सरकारें और खुफिया एजेंसियां मिलकर खेल रही हैं। रही बात देश के मुसलमानों की तो उनमें शिक्षा का स्तर बेहद कमज़ोर है। बड़े उद्योग-धंधों और नौकरियों में वे बहुत कम हैं। ज्यादातर मुसलमान परंपरागत रूप से कारीगर, दर्जी, बुनकर, मैकेनिक व दस्तकार वगैरह का काम करते हैं और स्वरोजगार में लगे हैं, किनारे पड़े हैं। उनसे व्यापक हिंदु आबादी की कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। फिर उनसे काहे की लड़ाई और कैसी होड़!
भले ही कुछ शहरों या मोहल्लों में मुसलमान गुंडे हों और वे अपने पीछे मुसलमानों और उनके खिलाफ हिंदु नेता अपनी गोलबंदी करते हों। गुंडे व अपराधी तो हर जाति व मजहब में मिलते हैं। लेकिन व्यापक हकीकत यह है कि आम मुसलमान जहां हैं, वहां की संस्कृति व भाषा को अपना चुके हैं। मेरे साथ प्राइमरी में पढ़नेवाला एक मुस्लिम दोस्त डरने पर मेरी तरह हनुमान चालीसा पढ़ता था। अयोध्या तक में ज़मीनी स्तर पर कभी कोई हिंदु-मुस्लिम तनाव नहीं रहा।
सच कहें तो देश के असली गद्दार वे लोग हैं जो एक तरफ कहते हैं कि हिंदु कोई धर्म नहीं, संस्कृति है। लेकिन व्यवहार में हमेशा धार्मिक उन्माद फैलाकर, दंगा-फसाद से राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे रहते हैं। मुसलमानों ने भारत में ही नहीं, पूरे दक्षिण पूर्व-एशिया में हिंदु संस्कृति को बड़ी सहजता से अपनाया है।
आपको पता ही होगा कि इंडोनेशिया में दुनिया की सबसे ज्यादा 12.9 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है। लेकिन शायद आपने गौर नहीं किया होगा कि वहां की राष्ट्रीय एयरलाइन का नाम गरुण है जो विष्णु के वाहन के नाम पर रखा गया है। रामायण व महाभारत का बहुत गहरा प्रभाव इंडोनेशिया की संस्कृति पर है जबकि वहां की हिंदु आबादी मात्र 1.7 प्रतिशत है। इंडोनेशिया ने वॉशिंगटन में अपने दूतावास के बाहर सरस्वती की मूर्ति लगा रखी है।
इस तरह सच कहें तो संस्कृति को लेकर समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के साथ हमारा कोई विवाद या टकराव है नहीं। पाकिस्तान में बसंत का उत्सव जितने जोशोखरोश से मनाया जाता है, उसका तो सौवां अंश भी भारत में नहीं दिखता।

दरअसल मुसलमान कौम को दानव बनाकर पेश करने का सिलसिला 1970 के दशक में अफगानिस्तान में कम्युनिस्टों से लड़ने के लिए अमेरिका ने शुरू किया था। कुरान में जिहाद का जिक्र 41 बार है तो लड़ाई से दूर रहने की बात 70 बार आई है। लेकिन अमेरिका ने अफगानिस्तान के स्कूलों में लाखों डॉलर झोंककर बच्चों की किताबों में युद्ध व जिहाद के किस्से भर दिए। तालिबान और ओबामा बिन लादेन अमेरिकी हरकतों को नतीजा हैं।
वहीं से भाजपा व संघी भी अपनी राजनीतिक खुराक खींच रहे हैं। हमें देश को बचाना है, भारत को पाकिस्तान नहीं बनने देना है तो इनके खतरनाक मंसूबों को जड़ से खत्म करना होगा। हम खुद और अपने बच्चों को सत्य के अनुसंधान व सच की राह पर चलने को प्रेरित करें, तभी इन जन व देशद्रोहियों का अंत हो सकता है।