शाहनवाज मालिक
झारखंड का बहुचर्चित अलीमुद्दीन अंसारी हत्याकांड मांस का कारोबार करने वाले मुसलमानों से गले में भगवा गमछा डालकर रंगदारी मांगने वाले एक संगठित गिरोह का पर्दाफाश करता है. हिंदी पट्टी के ज़्यादातर ज़िलों में आवारा और निठल्ले किस्म के लोग गले में भगवा गमछा डालते ही मामूली गोश्त कारोबारियों से वसूली करने के लिए अधिकृत हो जाते हैं. बीते साल जून में रामगढ़ में अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या इसलिए की गई क्योंकि उसने रंगदारी देने से मना कर दिया था.
अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या 29 जून 2017 की सुबह तकरीबन 10 बजे रामगढ़ में की गई थी. उस दिन अलीमुद्दीन अपनी मारूति वैन में रोज़ाना की तरह गोश्त लेकर चितरपुर जा रहे थे लेकिन पहले से इंतज़ार कर रहे गौरक्षकों ने बीच बाज़ार में अलीमुद्दीन की वैन रोक ली. फिर उसे वैन से खींचकर बाहर निकाला और पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी.
अब रामगढ़ की फास्ट ट्रैक अदालत ने छह महीने के भीतर 11 लोगों को अलीमुद्दीन की हत्या के लिए दोषी ठहराया है. इस केस की निगरानी रांची हाईकोर्ट ख़ुद कर रहा था. मुजरिमों के नाम दीपक मिश्रा, छोटू वर्मा, संतोष सिंह, विक्की साव, सिकंदर राम, कपिल ठाकुर, रोहित ठाकुर, राजू कुमार, विक्रम प्रसाद , उत्तम राम और नित्यानंद महतो है. नित्यानंद महतो वारदात के दौरान भाजपा का ज़िला मीडिया प्रभारी था.

अलीमुद्दीन हत्याकांड की शुरुआती तफ़्तीश में ही झारखंड पुलिस ने इसे पूर्व नियोजित क़रार दिया था. कॉल डीटेल रिकॉर्ड्स से पुलिस को पता चला था कि हत्यारे जोकि भगवा संगठनों से जुड़े हुए थे, मांस का कारोबार करने की एवज में अलीमुद्दीन से रंगदारी मांग रहे थे. अलीमुद्दीन अगर बजरंग दल, गौरक्षकों और भाजपा के ज़िला मीडिया प्रभारी को हर महीने रंगदारी पहुंचाते रहते तो वो मांस का कारोबार करने के लिए आज़ाद थे. फिर वो चाहे गोश्त भैंस का होता या फिर गाय का.
मगर अलीमुद्दीन ने रंगदारी देने से मना कर दिया था जिसके बाद हत्यारों ने उनकी हत्या की साज़िश रची और 29 जून 2017 को मार डाला. रामगढ़ की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने तीन मुख्य आरोपियों दीपक मिश्रा, छोटू वर्मा और संतोष सिंह को आईपीसी की धारा 120 बी के तहत यानी आपराधिक षडयंत्र रचने का भी दोषी पाया है.

इस केस में झारखंड पुलिस ने शुरुआती तफ़्तीश के बाद जो दावा किया था, वो उसे अदालत में साबित करने में कामयाब हुई. इस तरह ये देश का पहला मामला है जब हत्यारे गोरक्षक दोषी क़रार दिए गए जो कि बीजेपी समर्थित भगवा संगठनों से जुड़े हैं और एक बीजेपी का ज़िला मीडिया प्रभारी है.
जहां झारखंड पुलिस और अदालत इस केस में पीड़ित परिवार के साथ न्याय करने के लिए बधाई के पात्र हैं, वहीं मेनस्ट्रीम मीडिया अपने गटर से बाहर निकलने को तैयार नहीं है. उसने इस ख़बर को हज़म कर लिया है. दोषी क़रार दिए जाने के बावजूद मीडिया न तो ये बता रहा है कि नित्यानंद महतो बीजेपी का ज़िला मीडिया प्रभारी था और न ही उसकी फोटो छाप रही है.