मुददस्सीर अहमद क़ासमी
सांप्रदायिक दंगो हों या आतंकवादी हमले, ज़ात पात की लड़ाइयां हों या देशों की युद्ध, प्रत्येक का परिणाम बेहद घातक साबित होता है। इनमें अक्सर बेगुनाह लोग मारे जाते हैं, औरतें विधवा होती हैं, बच्चे अनाथ होते हैं, बुजुर्ग माता और पिता बुढ़ापे का सहारा खो बैठते हैं और अनगिनत लोगों का जीवन नरक बन जाता है। अगर गौर किया जाए तो हम इस निष्कर्ष पर पोहचेंगे कि यह दुर्घटनाओं मुख्य रूप से हमारे अंदर मानवता के सम्मान के जज़्बे के ना होने के कारण होते हैं। यह सच है कि कुछ लोग बेजा गलतियां करते हैं, जिसे किसी भी कीमत पर मान्यता नहीं दिया जा सकता और न ही कोई सामान्य ज्ञान रखने वाला व्यक्ति उनका समर्थन कर सकता है, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि प्रतिक्रिया में केवल उन्हीं लोगों को सज़ा दी जाए जो मूल दोषी हैं। ऐसा बिल्कुल भी ना हो की पाप कोई करे और सजा कोई और भुगते क्योंकि यह न्याय की आवश्यकताओं के खिलाफ है।
अफसोस के साथ आज हमें इस बात को स्वीकार करना पड़ता है कि इस समय दुनिया में बहुत सारे लोग, दल और देश ऐसे हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए ग़लत रास्ता अपनाते हैं और यही वह लोग हैं जो छोटे पैमाने से लेकर बड़े पैमाने तक दुनियां में अशांति फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं।
हमें यह समझ लेना चाहिए कि भयानक दंगे और खूनी युद्ध हमारी समस्याओं का समाधान नहीं हैं और न ही उनसे हम दुनिया को शांति का केंद्र बना सकते हैं। इसलिए दुनिया में रहने वाले सभी इंसानों का इस बात पर सहमत होना ज़रूरी है कि बतौर मनुष्य प्रत्येक को अपने अपने हिसाब से जीवन जीने का पूरा अधिकार है और इस अधिकार को छीनने का हम में से किसी को भी इखतियार नहीं है। यह बिंदु उन बातों में से है जिस पर किसी भी धर्म के किसी भी व्यक्ति को मतभेद नहीं हो सकता, इसीलिए मानव जाति का इस बिंदु पर सहमत हो जाना अपेक्षाकृत आसान है, अगर इस बात पर हम सभी को सहमत कर पाते हैं तो हमारे लिए अपने-अपने हिसाब से जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करना बेहद आसान हो जाएगा और हम दुनिया को रहने के लिहाज से भयानक जगह बनने से बचा पाएंगे, क्योंकि इस सूरत में अगर किसी का गलत खून होगा तो एक साथ तमाम लोग उसकी निंदा करेंगे और खूनी सजा से नहीं बच पाएगा, जिसके बाद कोई भी व्यक्ति अपराध की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा।
इसी के साथ अगर हम सम्मानजनक जीवन गुज़ारना चाहते हैं तो हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम दूसरों का सम्मान करना सीख लें क्योंकि एक व्यक्ति की महानता का रहस्य इसमें है कि वह दूसरे व्यक्ति को बतौर मनुष्य उसकी शायाने शान सम्मान दे, इसलिए ‘सम्मान दो और सम्मान लो’ की कहावत सभी मनुष को मालूम है और यह दुनिया को स्वर्ग जैसा बनाने का एक बेहतरीन तारिक़ भी है क्योंकि दोस्त तो दोस्त दुश्मन को भी सम्मान देकर उसका दिल जीता जा सकता है। लेकिन अफ़सोस यह है कि आज लोग प्रतिद्वंद्वी की मानहानि को अपनी बहादुरी समझते हैं ज़ात व मज़हब, रंग व नस्ल, देश और क्षेत्र के नाम परं नफरत का घिनोना खेल खेलते हैं। इन परिस्थितियों में विश्व शांति के नारे की किया स्थिति हो सकती है उसको हर बुद्धिजीवी समझ सकता है, क्योंकि नफरत की घाटी में प्यार के फूल कभी नहीं खुलते। इसलिए व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में हमें यह समझ लेना चाहिए कि सामने वाले की इज़्ज़त ख़राब करके या अपमान करके हम सम्मानजनक नहीं रह सकते।
दुनियां भर में हालांकि मानवता पर हमला करने वाले लोग विभिन्न धर्मों के अनुयायी हैं लेकिन पूर्व से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक ज्यादातर मुसलमानों को बदनाम किया जा रहा है और नतीजतन इस्लाम उग्रवाद और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला धर्म करार दिया जा रहा है, बेशक यह वर्तमान समय का एक बड़ा मुद्दा है। इसी लिए खास तौर से मुसलमानों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह व्यावहारिक रूप से और अपनी बातों से दुनिया को बता दें कि जिस धर्म के आधार में ही मानवता के सम्मान की शिक्षा हो वो कैसे मानवता का अपमान होने दे सकता हे। कुरान पाक में सूरह इसरा की आयत नंबर 70 देखिए जिसमें अल्लाह तआला कहते हैं: “और हमने सम्मान दिया आदम की औलाद को।” डार्विन के सिद्धांत ‘क्रमागत उन्नति सिद्धांत’ को छोड़कर, क्या किसी को इस बात में मतभेद हो सकता है कि इस दुनिया में आने वाले सभी इंसान हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की औलाद हैं? वास्तव में किसी को मतभेद नहीं हो सकता, इस पहलू को ध्यान में रखते हुए आयत से यह बात साबित हो गई कि बतौर औलाद आदम दुनिया में बसने वाले सभी लोग सम्मान के हकदार हैं।
एक पवित्र हदीस से इस बिंदु को समझने में अधिक मदद मिलती है। एक हदीस के मोताबिक हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अबु लैला ने बयान किया कि सहल बिन हनीफ़ और क़ैस बिन साद, कादसया में एक जगह बैठे थे। लोग उनके सामने से जनाज़ा लेकर गुजरे तो वे दोनों खड़े हो गए, उन्हें बताया गया कि यह एक ज़िम्मी (काफिर) का जनाज़ा है, तो इन दोनों ने फ़रमाया (एक बार) मुहम्मद (स.अ.व.) के सामने से एक जनाज़ह का गुज़र होआ तो आप अलैहिस्सलाम खड़े हो गए आप (स.अ.व.) से निवेदन किया गया कि यह तो यहूदी का जनाज़ह है आप (स.अ.व.) ने कहा, क्या वह इंसान नहीं था? (बुखारी शरीफ)
गंभीरता से सोचए की एक तरफ कुरान और पैगम्बर मुहम्मद की मानवता के सम्मान को लेकर इतनी उच्च शिक्षा है और दूसरी ओर गंभीर बात ये है की इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मन यह आरोप लगाते हैं कि मुसलमान अपने प्रतिद्वंद्वी को सम्मानित नहीं समझते। पहली बात तो यह है कि जो कुरान और हदीस की इन रौशन शिक्षाओं का पालन नहीं करते वे पक्का मुसलमान नहीं हो सकते और जो पक्का मुसलमान हैं वे इन शिक्षाओं को कभी नजरअंदाज नहीं कर सकते तो कोई कैसे कह सकता है कि मुसलमान अपने प्रतिद्वंद्वी को सम्मानित नहीं समझते।
मौजूदा हालात का गहराई से समीक्षा के बाद हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि मुसलमानों को हिंसक और मानवता विरोधी साबित करने के पीछे संभवतः निम्न कारणों हो सकती हैं: (1) इस्लाम के दुश्मन, लोगों को इस्लाम से रोकने के लिए उन्हें मुसलमानों की एक तिरस्कार अपमानजनक तस्वीर दिखाना चाहते हैं। हालांकि उन्हें अच्छी तरह पता है कि इस्लाम की इमारत मानवता के सम्मान पर म्बनी पाकीज़ह शिक्षाओं पर काईम है। (2) इस्लाम के दुश्मन मुसलमानों को दुनिया के सामने एक हिंसक और क्रूर क़ोम के रूप में पेश करना चा चाहते हैं। इसलिए समय-समय पर मुसलमानों की भावनाओं को भड़काया जाता है ताकि मुसलमान भावनाओं की रौ में बह कर प्रतिक्रिया के रूप में कुछ ऐसे अनुचित काम कर जाएं जो इस्लाम दुश्मन लोगों के लिए इस्लाम और मुसलमानों की गलत छवि पेश करने के अधिक बहाने पैदा करदे और उन्हें मानवता विरोधी साबित किया जा सके।
सार शब्द यह है कि मौजूदा हालात के संदर्भ में मज़बूत रहने के लिए मुसलमानों के सामने दो रास्ते हैं (1) मानवता के सम्मान के हवाले से कुरान और पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) की शिक्षाओं पर पूरी तरह प्रतिबद्ध होकर वस्तुतः मैं मानवता को महानता के उच्च स्थान पर बैठाने वाले बन जाएं और (2) होश मंदी से काम लेते हुए इस्लाम दुश्मनों की साजिश का शिकार न बनें और यह सुनिश्चित करें कि किसी भी स्थिति में मानवता के अपमान की कोई भी प्रक्रिया उनसे न हो।
