रामनवमी हिंसा: बेटे के कातिलों को माफ कर दीजिएगा इमाम साहब मगर…

imdadul rashidi imam asansol 650x400 71522412672 640x398

माफ़ कर देना अच्छी बात है मगर सवाल माफ़ करने का नहीं है, सवाल ये है कि वो कौन लोग थे जिन्होंने इमाम साहब के लड़के को जान से मार डाला? अगर आज उनकी पकड़ नहीं हुई तो कल किसी पण्डित जी के लड़के को भी मार सकते हैं जो कि बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा।

सवाल शांति का नहीं है, सवाल ये है कि आख़िर वो कौन लोग हैं जो बार-बार शांति को भंग करना चाहते हैं? अगर अभी उनकी पहचान नहीं की गयी तो कल आप लोगों के आत्मा की शांति की प्रार्थना के सिवा कुछ न कर सकेंगें।

कहाँ गए NSUI के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री फेरोज़ ख़ान जो अपनी हर तक़रीर में कांग्रेस के एहसान को याद दिलाते हुवे कहते हैं कि आप टोपी और दाढ़ी में भी महफ़ूज़ हैं? कांग्रेस ने इस देश में आप को इतनी आज़ादी दी है कि आप अपनी पहचान और अधिकार के साथ जी सकते हैं।

फेरोज़ ख़ान अपनी संकुचित सोच के कारण मुसलमानों के अधिकार को दाढ़ी और टोपी से आगे नहीं ले जा पाते। कोई ज़रा उनको बताए कि टोपी और दाढ़ी की सियासत हम ख़ूब समझते हैं साहब, कोई नयी बात करिये।

इस दुख की घड़ी में इमाम साहब के साथ हूँ मगर एक गुज़ारिश भी है कि आप माफ़ ज़रूर करिएगा उन अपराधियों को जिन्होंने आप के लड़के को शहीद किया है मगर एक बार उन्हें पहचान में आने तो दीजिए कि वो हैं कौन लोग? कैसे दिखते हैं? किसके कहने पर इन घटनाओं को अंजाम देते हैं? ताकि ये समाज देख सके कि अपराधी दाढ़ी और टोपी में नहीं होते जिसे पूँजीवादी मीडिया बताने कि कोशिश करता है, जिसे टीवी सीरियल्स दिखाते हैं, जिसे फ़िल्मी दुनिया कैश करती है, जिसे भाजपा शासित राज्यों के पाठ्यक्रम में कहानी और कार्टून के ज़रिए दिखाया जाता है और अपराधी को दाढ़ी व टोपी के ट्रेड मार्क से सुशोभित किया जाता है।

माफ़ कर दीजिएगा अपराधियों को मगर चेहरे बेनक़ाब तो हो जाने दीजिए। शान्ति की अपील करिएगा मगर पहले ये साबित तो कर लेने दीजिए कि इस देश में सेक्युलरिज़म को हमारे आप जैसे दाढ़ी टोपी वाले ही अपने कंधों पर ढ़ो रहे हैं। कभी सेक्युलरिज़म को ढ़ोते हैं कभी अपने बच्चों की लाशों को, कभी जुनेद को ढ़ोते हैं तो कभी अफ़राजुल को….। जब इस से ख़ुद को सेक्युलर साबित नहीं कर पाते तो फिर जेलों को गुलज़ार करते हैं।

मसीहुज्जमा अंसारी

सन 2007 में सच्चर जी ने बताया था कि जेलों में 20-25 प्रतिशत हैं और अभी UP जैसे राज्य में 35 प्रतिशत का आँकड़ा पार करने वाले हैं। गोरखपुर की जेल में तो 40 प्रतिशत हैं। सरकारी नौकरियों से ज़्यादा जेल में रहकर सेक्युलर होने का सबूत देते हैं। फिर भी सरकारें ये कहती हैं …कि दिल अभी भरा नहीं…!

विज्ञापन