मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाम एक खुला ख़त

आदरणीय
अखिलेश यादव
(मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश)

इन दिनों अखबारों की रिपोर्ट से पता चल रहा है कि आप विकास यात्रा निकाल रहे हैं। इस यात्रा के द्वारा आपकी पार्टी के कार्यकर्ता आपके द्वारा कराये गये विकास कार्यों आपकी उपलब्धियों को गिना रहे हैं। आपको नहीं लगता कि आपको अपनी उपलब्धियों के साथ – साथ एक दो अपनी खामियां ही गिना दीं जाये। पिछले दिनों आपके परिवार में झगड़ा चला वह झगड़ा विरासत का था या फिर आपके मुताबिक ‘सरकार’ का मैं इस मामले में नहीं जाना चाहता। मगर उस प्रकरण में एक बात आपके साथ पॉजीटिव लगी वह यह कि आपने अपने मंत्री गायत्री प्रजापति को भ्रष्टाचार में लिप्त पाते ही हटा दिया, ये अलग बात है कि बाद में उनको फिर से मंत्री बना दिया गया। खैर आपके साथ सकारात्मक पहलू यह है कि आपके पास बाप है अगर कुछ गलत होगा तो आपके पिता जी संभाल लेंगे। मगर एक दादरी का अखलाक आपको याद होगा वह वैसे तो दो बेटों का बाप था मगर उनमें से एक बेटा भारत माता की रक्षा के लिये वायू सेना में गया था। वह देश रखा रहा था मगर गौआतंकियों ने उसको अनाथ बना दिया।

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मैं यह नहीं कहता कि आपकी सरकार ने उस भारत माता के लाल से उसका बाप छीन लिया बल्कि यह कह रहा हूं कि आपने जो कार्रावाई की थी वह वैसी नहीं थी जैसी होनी चाहिये। हाल में उत्तर भारत में चिकनगुनिया और डेंगू का कहर जारी है। अखबारों के पन्ने हर रोज कोई न कोई लाश ऐसी जरूर गिराते हैं जिसके मरने की वजह चिकनगुनिया या डेंगू होता है। एक दिन उनकी चपेट में वह शख्स भी आ गया जिस पर ‘दादरी’ करने का आरोप था। उसे अस्पताल भी ले जाया गया मगर वह बच न सका।

वे ‘सेनाऐं’ जो आये दिन मुसलमानों को गालियां देती रहती हैं फिर उन्हीं सेनाओं के लोग मृतक के गांव पहुंचे और उन्होंने उसकी लाश को तिरंगे से ढ़ाप दिया। वही तिरंगा जिसके जमीन पर गिर जाने से उसका अपमान हो जाता है उस तिरंगे को एक हत्यारोपी की लाश पर डाला गया क्या यह तिरंगे का अपमान नहीं था ? वह तिरंगे जिसे उल्टे फहराने तक से कई लोगों पर देशद्रोह तक के मामले दर्ज हुऐ हैं वह तिरंगा एक हत्यारोपी की लाश पर पड़ा था क्या यह तिरंगे का अपमान नहीं था। तिरंगे का यह अपमान उस देश में हुआ है जहां राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे महीनों तक चले हैं, जहां राह चलते राहगीरों को लाठी डंडे से सबक सिखाकर उनसे भारत माता की जय कहलवाया गया है। बात अभी खत्म नहीं हुई। जिसके ऊपर तिरंगा लपेटा गया था वह एक ऐसी हत्या का आरोपी था जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भद्दी तस्वीर प्रस्तुत की थी। जिन लोगों ने उसे तिरंगे में लपेटा फिर उन्हीं लोगों ने वहां पर लाउड्स्पीकर लगा कर मुसलमानों को खुले आम गालियां दी। वैसे मुसलमानों को अब इन गालियों को सुनने की आदत हो गई है विरोध भी कहां तक करें, हम एक का विरोध करते हैं मगर अगली रात दूसरा पैदा हो जाता है और ‘नेता’ बन जाता है। अब चूंकि मुसलमान इस देश से महबूब की तरह मौहब्बत करते हैं तो गालियां तो सुननी पड़ेंगी हीं, क्योंकि इश्क का एक दस्तूर है कि वह मौहब्बत ही क्या जिसमें रुस्वाई न हो।

मुसलमान शिकायत नहीं करेंगे कि उन्हें गालियां क्यों दी जा रही हैं। उनकी शिकायत तो दूसरी है। और ये शिकायत सिर्फ मुसलमानों की ही नहीं बल्कि हर उस भारतीय नागरिक की है जिसकी भारतीय संविधान में आस्था है। टीपू भैय्या आपने ‘अखलाक’ के हत्यारोपी को बीस लाख मुआवजा दे दिया और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा कर दी। इससे आप क्या संदेश देना चाहते हैं ? यही कि आपकी सरकार ने एक मुसलमान की मर्डर सुपारी की कीमत बीस लाख रुपये रखी है ? क्या मर्डर सुपारी का ठेका भी आपकी सरकार ने अपने पास रखा है। कल अगर उन तमाम कैदियों के परिजन जिनकी मौत जेल में हुई है पंचायतें करके वैसे ही ललकारने लगे जैसा बिसहाड़ा में हुआ है तब आप क्या करोगे ? क्या आप उनकी अस्थियों को तिरंगे में लपेटने का अधिकार दे दोगे ? या फिर उनको मुआवजा दोगे ? दरअस्ल अगर एक पंक्ति में कहें तो ‘आपने हिन्दू तालिबानों के सामने घुटने टेक दिये हैं’ जबकि घुटने टेकने की उम्र अभी आई ही नहीं थी। अगर मथुरा में दो पुलिस अधिकारियों को शहीद करने वाले रामवृक्ष यादव के परिजन रामवृक्ष को शहीद बतायें उसका मुजस्सिमा बनाये, और वैसी ही मांग करें जैसी बिसहाड़ा के ‘बयानवीरों’ ने की है तब आप क्या करेंगे ? क्या मुआवजा देंगे ? क्या रामवृक्ष यादव के परिवार के सदस्यों को नौकरी देंगे ? टीपू भैय्या आपसे उम्मीदें थीं मगर आपने गौआतंकियों के सामने घुटने टेक कर उन सब उम्मीदों का गला घौंट दिया। आप हमारी उम्मीदें के कातिल हैं, गुनहगार हैं, उसके बाद आप सरकार हैं।

धन्यवाद।

Wasim Akram Tyagi लेखक मुस्लिम टूडे मैग्जीन के सहसंपादक हैं।
Wasim Akram Tyagi लेखक मुस्लिम टूडे मैग्जीन के सहसंपादक हैं।
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