मास्टर विजय सिंहः 21 साल का एकला चलो रे संघर्ष

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गुलफाम अहमद

विश्व के सबसे लंबे एकल धरने पर बैठे मास्टर विजय सिंह का अज्म तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं टूटा है। सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई को भले परिवार का सहयोग न मिला हो, लेकिन तमाम लोगों ने उनके उद्देश्य को सराहा है।

शासन और प्रशासन की उपेक्षा के बावजूद वे अपने मार्ग से डिगे नहीं। मास्टर विजय सिंह का जन्म दस मई 1962 को जनपद शामली तत्कालीन जनपद मुजफ्फरनरगर के चैसाना गांव में हुआ। उनके पिता भगत सिंह तथा माता चंदा देवी के साधारण परिवार में उस समय खेती का ही व्यवसाय होता था। मास्टर विजय सिंह ने चैसाना के सरकारी प्राईमरी स्कूल में अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की।

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हाई स्कूल की शिक्षा उन्होंने निकट के कसबे झिंझाना से हाई स्कूल तथा सहारनपुर जिले के गंगोह कस्बे से इंटरमीडिएट की शिक्षा ग्रहण की। चैसाना से जिला मुख्यालय मुजफ्फरनगर 74 किमी दूर था। ऐसे में मास्टर विजय सिंह ने सहारनपुर के जेवी जैन डिग्री काॅलेज से स्नातक तथा इसके बाद रोहतक विश्व विश्वविद्यालय से बीएड की डिग्री हासिल की। शिक्षा काल से ही वे खेल तथा अन्य गतिविधियों में पूर्ण मनोयोग से भाग लेते रहे। राष्ट्रवादी विचारधारा के चलते उन्होंने एनसीसी में प्रशिक्षण प्राप्त कर सी सर्टीफिकेट प्राप्त किया। हाॅस्टल जीवन में उन्होंने काफी कुछ सीखा।

उनकी इच्छा थी कि वे सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करें लेकिन घरेलू परिस्थितियों के चलते यह संभव नहीं हो पाया अपने प्रारम्भिक कार्यकाल में उन्होने कोअपरेटिव बैंक में किसान सहकारी समिति में क्लर्क के रूप में सेवा की वहां व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते पांच माह में ही उन्होने इस नौकरी को विदा कर दिया इसके बाद उन्होंने गांव के स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य शुरू किया ।1983 में शिक्षक के रूप में उन्होने बच्चों के भविष्य के निर्माण के लिए जिस तरह अपना योगदान दिया उससे उनके नाम के साथ मास्टर जी शब्द उनकी पहचान बन गया । सितम्बर 1994 तक उन्होने शिक्षक के रूप में कार्य किया गांव में दरिद्रता और भूखे बच्चों को देखकर उनकी पीड़ा को समझा और गरीब और मध्यम वर्ग की आकांक्षाओं को लेकर सघर्ष को जीवन का अपना लक्ष्य बना लिया 1996 में उनकी शादी पुष्पा के साथ हुई और उनके परिवार में उनकी दो बेटियां कल्पना और साक्षी तथा एक पुत्र गोपाल है । गांव में उन्होने देखा कि वहां जिस की लाठी उसकी भैंस की परम्परा कायम थी और जो अधिकार गरीबों को मिलने चाहिए थे उनपर दबंगों का कब्जा था लोकतंत्र की आड़ में अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर यह दबंग गरीबों के पट्टे के नाम पर सार्वजनिक भूमि पर अनाधिकृत कब्जे किये बैठे थे मास्टर जी ने इसके खिलाफ आवाज उठाई तो उनके ही सजातीय राजपूत परिवार के लोगों ने उनका विरोध शुरू कर दिया यहां तक कि इन दबंगों के भय के चलते उन्हे अपना गांव छोड़ना पड़ा अतः उन्होने फैसला किया कि वे अपने परिवार को छोड़कर जिला मुख्यालय पर गरीबों के हक के लिए संघर्ष करेंगे। इस बीच परिवार और संबंधियों ने भी उनका सहयोग नहीं किया और उल्टे उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा।

21 वर्ष के दोरान वे अपने घर परिवार को छोड़ एक संन्यासी के रूप में मुजफ्फरनगर कलेक्टेªट परिसर में सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाने के लिए धूनी रमाकर बैठ गए। 21 साल से अधिक समय से यहां कलेक्टेªट परिसर का एक कोना और उस पर डाले गए टाट पल्ली की आड ही उनका आशियाना है। इस आशियाने में गर्मी सर्दी और मच्छरों की मार सहते हुए कई बार गंभीर बीमारियों से भी उनका पाला पड़ा, लेकिन उनका हौसला नहीं टूटां। उनके संघर्ष की यह यात्रा अनवरत जारी है। विभिन्न रिकाॅर्ड बुक्स लिम्का बुक और एशिया बुक में यह धरना विश्व के सबसे लंबे एकल धरने के रूप में जारी है।

-लेखक शाह टाइम्स में पत्रकार है 

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