सिर पर टोपी लगा लेने से कोई मुसलमान नहीं बन जाता..!

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कई बार जैसे हम दिखते हैं, जैसी जिंदगी जीते हैं और जिन नियमों और नैतिकताओं की बातें करते हैं, वे हममे से कइयों के आसपास दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती। फिर इसमें भी कइयों का क्‍या कहे, इस तरह से तो पूरा समाज दिखाई देने लगा है। यकीनन जैसा हम सोचे और वैसी जिंदगी और मर्यादाओं का पालन करना सीख जाए, तो पूरे समाज में अमन और शांति आ जाए। लेकिन ऐसा होता नहीं है।

अमूमन देखने में यह आता है कि हम सब दोहरी जिंदगी का शिकार होते हैं। इसे मुंह में “राम बगल में छुरी” वाले मामले के तौर पर देखा जाए तो बेहतर होगा। वैसे दोगले और दोहरेपन से तो पूरा देश और समाज यहां तक की दुनिया जूझ रही है।

INDIA-RELIGION-ISLAM-RAMADAN

सियासत कहती कुछ है और करती कुछ है, आदमी करता कुछ है और होता कुछ है, जाति, संप्रदाय, और यहां तक समुदाय भी इन्‍हीं दोहरे मापदंडों के चलते सिमट गए हैं और एक तरह से अपने-अपने स्‍वार्थों में उलझे हैं। यही नहीं धर्म का भी यही हाल है। दुनिया के सारे धर्म अमन, भाईचारे और शांति की बात करते हैं, लेकिन आप देखेंगे की दुनिया में इस समय धर्म का ही झगड़ा सबसे बड़ा है।

आपके सामने तस्‍वीर कुछ दूसरी ही है। हर व्‍यक्‍ति अपने धर्म को श्रेष्‍ठ कह रहा है जबकि ये और बात है कि दुनिया के सारे धर्मों में यही मूल बात सामने आती है कि व्‍यक्‍ति को कैसे श्रेष्‍ठ बनाया जाए। कैसे आदमी को आदमी से प्‍यार, मोहब्‍बत अमन और भाईचारे के साथ रहना चाहिए।  लेकिन होता कुछ दूसरा ही है धर्म आदमी को जो सिखाना चाहता है, आदमी उससे कुछ दूसरा ही सीखना चाहता है।

अब जरा कल के ही एक वाकये को लें। कल शाम मैं मम्मी के साथ पास की ही एक दूकान से घर का राशन लेने गई थी, तभी देखा दो लड़कों में जोरदार लड़ाई हो रही है। हालांकि मुझे नहीं पता  था कि लड़ाई हो क्यों रही है? या लड़ाई के पीछे वजह क्या है? पहले तो वहां खड़े सभी लोगों ने उन दोनों की बातों को नजर अंदाज किया, लेकिन जब लड़ाई आवाजों के जरिये जंग में बदलने लगी, तो लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई। उस भीड़ में मैं भी खड़ी थी, जब आगे बढ़कर देखा, तो दो लड़के थे, दोनों के ही मुंह में गुटखा था, जो एक दूसरे को गाली-गलौज करने दौरान मुंह से ऐसे ही बाहर आ रहा था, जैसे उनके दिल से एक दूसरे के लिए नफरत बाहर आ रही थी।

उन लड़कों में से एक सादे  कमीज और पैंट में था, तो दूसरा कुर्ते पजामे में और सिर पर सफेद रंग की टोपी भी लगा रखी थी। दिखने में लग रहा था, जैसे या तो वो नमाज पढ़ने जा रहे हैं, या  नमाज पढ़कर आ रहे हैं। दोनों ही किसी बात को लेकर बहुत जोर से लड़ रहे थे।

खैर,  झगड़े की वजह मुझे अब तक नहीं पता थी, और न ही मैंने जानने की कोशिश की, हां लेकिन इतना जरूर दिख रहा था कि दोनों एक दूसरे को मारने पर उतारू हैं।धीरे-धीरे उनकी लड़ाई ने जोर पकड़ने लगी थी कि लोगों ने बीच-बचाव करवाकर लड़ाई  को खत्म करवा दिया। मुझे लगा की लड़ाई खत्म हो गई, लेकिन अजानक से जिस  लड़के ने सफेद रंग का कुर्ता पजामा और सिर पर टोपी लगा रखी थी, वो एक बार फिर से ऐसी धाराप्रवाह गालियां देने लगा कि दुनिया की हर मां-बहन का सिर शर्म से झुक जाए। वैसे ये बात आज तक नहीं समझ नहीं आई कि पुरुष आपसी लड़ाई में  अपनी मां-बहन को क्‍यों घसीटते हैं और उसमें उन्‍हें क्या मजा आता है?

बहरहाल, तो वह लड़का जो बेहद गंदी-गंदी  गालियां देकर आगे बढ़ रहा था, और उसके चेहरे को देखकर लग रहा था कि वह अब किसी भी कीमत चुप होने की स्‍थिति में नहीं है, तो उसके मिजाज और तेवर देखते हुए पास ही खड़े लोगों ने दोनों से कहा ‘’जाओ भाई जाओ पहले नमाज पढ़ने जाओ ‘’ इतना सुनते ही दोनों के मंह मुंह ही बंद हो गए और चेहरे पर थोड़ी झेंप और शर्मिंदगी दिखाई दी और वह उल्‍टे पैर चलने को हुए। यकीनन उसके लौटने और मुंह बंद होने की स्‍थिति से एक बात तो साफ हो गई कि वे दोनों ही नमाज पढ़ने जा रहे थे।

जाहिर है इस तरह लड़ाई तो वहां खत्म हो गई थी, और लोग भी झगड़ा खत्‍म होते देख अपने-अपने काम पर लौटने लगे और उनमें ही मैं भी थी। लेकिन मन में एक अजीब सा दुख था और भारीपन साल रहा था। रह-रहकर प्रश्‍न मन में घुमड़ रहे थे कि आखिर वे लड़के क्‍यों झगड़ रहे थे? और यदि वह किसी बात पर झगड़ भी रहे थे, तो जिस वक्‍त झगड़ रहे थे वह कितना गलत था। फिर झगड़ते हुए जैसा उनका, दिल और दिमाग हो रहा था, वैसा उन्‍हें कम से कम शोभा तो नहीं देता।

वे नमाज पढ़ने जा रहे थे। खुदा की इबादत करने जा रहे थे और ऐसा आचरण और हरकतें कर रहे थे, जिसे देखकर कोई भी उन्‍हें शैतान से कम नहीं कहता। तो फिर क्‍या नमाज पढ़ना उनके लिए महज एक दिखावा भर है? क्‍या उन्‍हें पता भी है कि मुसलमान होने का मतलब क्‍या है?

सच, ये सब देखकर दिल बहुत दुखा। दुख इसलिए नहीं की वे आपस में लड़ गए, दिल इसलिए दुखा  कि शायद इन जैसे लोगों की वजह से पूरा मुस्लिम समाज लोगों के निशाने पर आता है।

ये शायद वे लोग होते हैं, जो अगर चार ‘टोपी’ वालों के साथ खड़े हों  या अपनी मां-बहनों पर पाबंदियों की बात आती हो, तो ऐसे अल्लाह वाले बनते हैं  के मानों इनसे अच्छा कोई नहीं, लेकिन अगर कहीं लड़ाई हो जाए तो फिर गालियों  में किसी हद को नहीं देखते। ये तक नहीं देखते के वक्त क्या है, वो किस  नेक काम के लिए जा रहे हैं।

बहरहाल, जैसा की पहले कहा, इस दुनिया में इन दिनों सबकुछ ऐसा ही चल रहा है। जो जैसा है वह वैसा बिल्‍कुल दिखाई नहीं देता। चाहे फिर वह समाज हो, देश हो या फिर सियासत, सारा कुछ दोहरे मापदंडों पर निर्धारित है, दिखावा और ढोंग लोगों की आदतों में शुमार होता जा रहा है और यही समाज, देश और दुनिया के अमन के लिए सबसे बड़ा खतरा है। – नाजनीन अहमद

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