आज जिस प्रकार से लोग डिवाइड एण्ड रूल पालिसी के अनुयायी बनकर भारत की एकताएवं अखण्डता की बात कर रहे हैं, बड़ा ही हास्यास्पद एवं चिंताजनक है। एक तरफ एकता एवं अखण्डता की बात दूसरी तरफ डिवाइड एण्ड रूल का अनुकरण कितना मज़ेदार तथ्य हैं?
कितनी आसानी से आम जनमानस इस पालिसी का हिस्सा बन गया खुद उसे भी पता नहीं। कहीं धर्म के नाम पर, कहीं जाति के नाम पर, कहीं क्षेत्र के नाम परऔर कहीं राजनैतिक पार्टीज़ के नाम पर, इन बटवारों के नाम पर तो एक अंधा अथवा मंद बुद्धि व्यक्ति भी बड़ी आसानी से चार घण्टे का भाषण दे सकने में सक्षम हो गया है। कैसी मज़ाकियां स्थिति है, इन सारी समस्याओं का इलाज आज़ाद भारत की तिथि से चल ही रहा है और मर्ज़ है कि बजाए घटने के और बढ़ता ही जा रहा है।
इस मर्ज के जनक अंग्रेज भी 70 वर्ष पूर्व भारत छोड़कर चले गये, मर्ज का इलाज भी अनवरत् किया ही जा रहा है फिर ऐसी कौन सी ताक़तें हैं जो इस मर्ज को बनायेरखने और बढ़ाने का कार्य बखूबी कर रही हैं? नि:संदेह उत्तर वरीयता के क्रम में तपाक से हमारी ज़बान से राजनैतिक पार्टियां ही निकलेगा। कौन सी ऐसी राजनैतिक पार्टी है जिसके नेताओं पर हत्या, लूट, रहज़नी, बलात्कार, घोटाला, भ्रष्टाचार, बेईमानी, रिश्वतखोरी, लोगों को बांटने, तुष्टिकरण-धर्मवाद-जातिवाद-सम्प्रदायवाद की राजनीति करनेआदि के इल्ज़ाम साबित नहीं हुए हैं? क्या कोई ऐसी पार्टी है जो डंके की चोट पर कह सकती हो कि मेरी पार्टी उक्त चीज़ों से पाक-साफ हैऔर मेरे नेताओं ने कभी ऐसे कार्य नहीं किये, जिसकी भी दुम उठाकर देखा जायेगा वहीं मादा नज़र आयेगा। क्या कभी कोई पार्टी शासन स्तर, राजनैतिक स्तर से हटकर सामाजिकस्तर पर जनता को इन समस्याओं के निदान के तरीके बताती है? कि वोट देने के बाद आप सभी आपस में प्यार मोहब्बत से रहना, मिलना-जुलना, एक-दूसरे के दुख-सुख में शामिल होना, एक-दूसरे की परेशानियों का ध्यान रखना, कभी एक-दूसरे से नफरत न करना। यक़ीनन कभी भी ऐसे वाक्य किसी भी पार्टी की ओर से सुनने को नहीं मिलते और सम्भवत: आगे भी नहीं सुनाई पड़ने के ही संकेत दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसे में स्पष्ट रूप से समझ आता है कि राजनीतिक पार्टीज़ जो इन बीमारियों की डाक्टर बन बैठी हैं उन्हीं के द्वारा पहले इन बीमारियों को पाल-पोस कर तैयार किया और फिर जन-मानस में फैलाया जाता हैं और फिर उन्हीं बीमारियों के इलाज के नाम पर जनता-जनार्दन का छक के शोषण किया जाता है।
आजकल कुछ मुस्लिम युवकों की हत्याओं के नाम पर कुछ राजनीतिक पार्टीज़ उनका हमदर्द और उनका रहनुमा बनने की आड़ में खूब हो-हल्ला, चीख़-पुकार मात्र कर रही हैं, इसी के बरअक्स क्या हमारे हिन्दू भाईयों के साथ हत्या, लूट, रहज़नी, बलात्कार जैसी घटनायें नहीं हो रही हैं? क्या उनके साथ अन्याय नहीं हो रहा? क्या वह भ्रष्टाचार से परेशान नहीं है? क्या उनके साथ न्यायपूर्वक कार्यवाही हो रही है? क्या उनका जान-माल सुरक्षित है? आज के हालात को देखते हुए क्या छलदम्भी, निष्ठुर, ढीट एवं धोकेबाज़ राजनीतिक पार्टीज़ की तरह हां की जगह न और न की जगह हां अथवा उन्हीं की तरह गोल-मोल जवाब दिया जाना चाहिए? हत्या, लूट, रहज़नी, बलात्कार होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे किन्तु जिस प्रकार से घटनाओं को धर्मवाद व जातिवाद का लबादा ओढ़ाकर राजनैतिक पार्टीज़ प्रस्तुत कर रही है, यह उसी डिवाइड एण्ड रूल पालिसी का हिस्सा है जिसके जनक क्रूर अंग्रेज ही हैं, यह कृत्य निहायत शर्मनाक एवं चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाला ही है। हत्या, लूट, रहज़नी, बलात्कार जैसी घटनाओं का सम्बन्ध सिर्फ और सिर्फ लॉ एण्ड आर्डर से है, न कि किसी धर्म अथवा सम्प्रदाय से। क्या अपराधियों द्वारा घटना घटित करते समय हिन्दू, मुस्लिम, दलित, क्षत्रियव ब्राम्हण जैसे शब्दों को बोल देने से ला एण्ड आर्डर अथवा सरकारी मशीनरी बरी हो जायेगी?
इस तरह की घटनायें स्पष्ट दर्शाती हैं कि कानून एवं सरकारी मशीनरी नाम की चीज़ का अपराधियों के मन में ज़र्रा बराबर भी भय व संकोच नहीं है, जो सरकारी मशीनरीज़ के लिए खुला हुआ चैलेंज है। पक्ष-विपक्ष एवं अन्य राजनैतिक पार्टीज़ इसी तरह का धार्मिक एवं जातिगत उन्माद जनता के बीच भली-भांति फैला पाने में सफल हैं, उनकी सफलता एवं हमारे शोषण का मुख्य बिन्दु हमारा धर्म, जाति एवं सम्प्रदाय में बंटे होने के साथ-साथ राजनैतिक पार्टीज़ के झण्डे तले भी बटे होना ही है, यही राजनैतिक पार्टीज़ का मुख्य एजेण्डा भी हैकि आप दूसरे समुदाय के भय के कारण् उनको अपना वोट बिना किसी विचार के उनको दे आयें। तथाकथित राजनीतिक दल जो स्वदेशी अपनाओ, विदेशी हटाओ का राग सुबह से शाम तक अलापते रहते हैं वह सत्ता में आते ही बिना सोंचे-समझे अतार्किक ढंग से विदेशी नीतियों और योजनाओं को जबरन हम पर लाद देते है, जो हमारे देशकालिक परिस्थितियों पर कभी खरी नहीं साबित होती हैं। राजनैतिक पार्टीज़ के इन कृत्यों के आधार पर यदि उनको डिवाइड एण्ड रूल पालिसी का पोषक और क्रूर अंग्रेजों का दलाल और उनका शिष्य कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।
बड़ी हैरत की बात है कि सोशल साइट्स-फेस बुक आदि में कुछ अच्छे ख़ासे पढ़े लिखे लोग भी उन्हीं जल्लाद पार्टीज़ की पालिसी में फंसकर उन्हीं की रंगत में उनकी ही भाषा बोल रहे हैं, जैसा राजनैतिक पार्टीज़ करवाना और बोलवाना चाहती हैं, और लोग नि:शुल्कबिन भाड़े का मजदूर बनकर दिन-रात उनके काम को बखूबी अंजाम देकर उनके काम को और आसान बनाने पर तुले हुए हैं। समाज के सभी वर्गों को आज गहराई से विचार करने एवं समझने की आवश्यकता है कि कहीं हम भी जाने-अनजाने क्रूर अंग्रेजों द्वारा पनपाई गई डिवाइड एण्डरूल की पालिसी का अनुकरण कर हमारा शोषण करने वाले दलालों (पार्टीज़) के दलाल तो नहीं बने जा रहे हैं?

कहीं हम अपनी तहज़ीब और सभ्यता के विनाश का कारण तो नहीं बन रहे हैं? कहीं हम भारत जैसे खूबसूरत देश को धीरे-धीरे तबाह व बर्बाद करने वालों की फेहरिस्त में अपना नाम अंकित तो नहीं करा रहे हैं? कहीं हम उन्मादी एवं हमेशा घृणा के दायरे में रहने वाली प्रवृत्ति के पोषक तो नहीं होते जा रहे हैं? कहीं हम आने वाली अपनी नस्ल के लिए अभिशाप बनकर दानव, असुर, शैतान व इबलीस आदि सम्बोधनों से पुकारने का अवसर तो प्रदान नहीं कर रहे हैं? मुख्यत: विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या हम राजनीतिक दलों के इस कूटनीतिक दलदल से कभी उबर पायेंगे?