उज्जल दोसांज विदेश में रहने वाले भारतीय जहां भी जमा होते हैं, वहां बातचीत का मुद्दा घूम-फिर कर आखिर भारत पर ही आ जाता है। भारत की तरक्की की बातें होती हैं और जात-पात, भ्रष्टाचार और गरीबी जैसे अभिशापों की चर्चा होती है। इन भारतीयों को भारत से लगाव काफी गहरा है।
आप मान सकते हैं कि विदेश में रहने वाले भारतीयों द्वारा भारत को केवल कोसने का चलन खत्म नहीं हुआ है, लेकिन काफी कमजोर पड़ा है। इस लगाव के पीछे भारत को आगे बढ़ता और भारतीय समाज के समृद्ध होने की लालसा के साथ-साथ भारत को भ्रष्टाचार मुक्त देखने की ख्वाहिश भी छिपी होती है। हमने भ्रष्टाचार मुक्त समाज देखा है और वैसे समाज में रहे हैं।
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हमें मालूम है कि जिस समाज में भ्रष्टाचार नहीं होता, वह किस तरह ज्यादा रचनात्मक, उत्पादक बन जाता है। हम भारत को दुनिया के देशों के बीच उसकी उचित जगह पर देखना चाहते हैं। लेकिन ऐसा तब तक नहीं हो सकता जब तक जात-पात और भ्रष्टाचार से मुक्ति नहीं मिल जाए।
और अगर इन दो अभिशापों से मुक्ति मिल जाए तो तीसरे अभिशाप (गरीबी) से अपने आप छुटकारा मिल जाएगा। सामाजिक और आर्थिक विकास में जाति हमेशा बाधा बनती रही है। भारत में आजादी के बाद से ही जाति का दबदबा किसी न किसी रूप में बढ़ता ही रहा है। जो कानून हैं, उनका फायदा समाज के बहुत छोटे तबके को मिल रहा है। हाल ही के एक सर्वे में बताया गया था कि भारत में कम से कम 27 फीसदी परिवारों को आज भी छुआछूत और भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है। यह केवल हिंदुओं में ही नहीं है। मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के परिवार इसके शिकार हैं। भ्रष्टाचार से गरीबी बढ़ती है।
गरीब-अमीर के बीच की खाई चौड़ी होती जाती है। भ्रष्टाचार समाज के सांस्कृतिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देता है। भारत फिलहाल तरक्की की राह पर है। लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर भ्रष्टाचार मिट जाए तो देश और कहां जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार से लड़ने का संकल्प तो दिखाते हैं। पर केवल खुद का ईमानदार होना काफी नहीं है। ये तो हर भारतीय की प्रधानमंत्री से न्यूनतम अपेक्षा है। मोदी के शानदार भाषणों में दिखता है कि वे भ्रष्टाचार खत्म करने को जरूरी मानते हैं।
पर असल में ऐसा लगता है कि वह इस बात को नहीं समझ रहे कि ईमानदार भारत के लिए ‘बहुत कम गवर्नमेंट और गवर्नेंस’ की जरूरत है। मोदी खामोश हैं। भारत हार रहा है। भ्रष्टाचार जीत रहा है। 68 साल से यही हो रहा है। भ्रष्टाचार और जात-पात गरीबी को नहीं मिटने दे रहा है। और, यह बात भी साफ कर दूं कि कड़ी मेहनता का विकल्प शानदार भाषण कभी नहीं हो सकते। सो, श्रीमान मोदी, कुछ कर के दिखाइए