एमआईएम सुप्रीमो ओवेसी के बिहार में ताल ठोंकने से सूबे के सीमांचल की राजनीति में हलचल पैदा हो गई है। जहां एक ओर ओवेसी के विरोधी यह कह रहे हैं कि ओवेसी के कारण भाजपा के धर्म के आधार पर वोटरों का धु्रुवीकरण तेज हो जाएगा और इसका प्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिलेगा। वहीं दूसरी ओर सूबे के जाने माने गांधीवादी चिंतक डॉ. रजी अहमद के मुताबिक ओवेसी बिहार के लिए कोई फैक्टर नहीं हैं। उनका यह भी कहना है कि इससे पहले भी भाजपा धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने का प्रयास करती रही है। अब ओवेसी के आने से नया कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
वहीं जाने-माने समाजशास्त्री अरशद अजमल के मुताबिक ओवेसी के कारण सीधे तौर पर भाजपा को लाभ मिलेगा। इसकी वजह यह है कि जब-जब धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण हुआ है, भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है और जिस हिस्सेदारी की बात ओवेसी कह रहे हैं, वह बढ़ने के बजाय घटती है। श्री अजमल ने बताया कि विधानसभा में हिस्सेदारी के लिहाज से देखें तो यह बात समझ में आती है।
मसलन मुसलमानों की हिस्सेदारी कब-कब बढ़ी। जैसे वर्ष 1977 में संपूर्ण क्रांति आंदोलन के लहर में भी विधानसभा में मुसलमानों की हिस्सेदारी 7.72 फीसदी थी। सबसे अधिक हिस्सेदारी वर्ष 1985 में सामने आई थी, जब 34 मुसलमान विधानसभा पहुंचे थे। उसके बाद से इस हिस्सेदारी में कमी आई है। लालूप्रसाद के कार्यकाल में मुसलमानों की हिस्सेदारी विधान परिषद में बढ़ी, परंतु विधानसभा में हिस्सेदारी घटकर 9.87 फीसदी रही। हालांकि श्री प्रसाद के बाद जब जदयू और भाजपा की सरकार अस्तित्व में आई तब यह घटकर 6.58 फीसदी हो गई।
श्री अजमल के मुताबिक मुसलमानों की हिस्सेदारी उनकी आबादी के लिहाज से बढ़नी चाहिए। ऐसी मांग हिन्दू धर्म के कई जातियों द्वारा समय-समय पर की जाती रहती है, इसलिए मुसलमानों की हिस्सेदारी भी बढ़नी चाहिए, यह कहना गलत नहीं है, परंतु सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यदि धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण होते हैं तो इसका नुकसान मुसलमानों को ही होता है। लोकतंत्र में उनकी प्रत्यक्ष हिस्सेदारी घटती है। अब चूंकि ओवेसी सीमांचल की राजनीति चुनाव आने पर कर रहे हैं तो ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि वे जिस तरह की भाषा और राजनीतिक शैली के लिए जाने जाते रहे हैं, उसका सीधा लाभ तो भाजपा को ही मिलेगा।
बहरहाल डॉ. रजी अहमद के विचार कुछ और ही हैं। उनका कहना है कि जब तथाकथित धर्म निरपेक्ष पार्टियां मुसलमानों को उनकी हिस्सेदारी नहीं देंगी तो उनके अंदर आक्रोश पनपेगा ही। लिहाजा आवश्यक यह है कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सभी पार्टियां सभी वर्गो व धर्मों को एक समान निगाह से देखे ताकि धर्मनिरपेक्षता अक्षुण्ण रहे। इसी में देश का भी भलाई निहित और प्रदेश का भी।
विधानसभा में मुसलमानों की हिस्सेदारी
वर्ष कितने जीते हिस्सेदारी