टीवी ने उन्हें अब तक के साहित्यिक प्रतिरोध का हीरो बना दिया है। यह जानबूझ कर किया गया है क्योंकि हममें से ज्यादातर लोग जानते हैं कि भाजपा से उनके बहुत करीबी रिश्ते रहे हैं। इस बार उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड मोदी सरकार के कहने पर मिला था।
यदि आप उनके फेसबुक पेज पर पिछले हफ्ते के पोस्ट पर जाएंगे तो देखेंगे कि वे सम्मान लौटाने वाले लोगों को बुरी तरह लताड़ रहे थे। बुरा भला बोल रहे थे फिर अचानक से ABP न्यूज़ पर प्लांटेड तरीके से सम्मान वापस कर देते हैं।
वहां वे जिस तरह से डिबेट करते हैं वह तो बेहतरीन था जिसके बाद हममें से बहुत से लोग उनकी तारीफ करने लगे थे यह भूल कर की यह वहीं इंसान है जिसने कवियों, लेखकों और बुद्धिजीवियों को ‘थके हुए लोग’ कह कर आलोचना की।
अब जिस तरह से टीवी वाले राना को झुका हुआ, घुटना टेक चुके, पर स्टोरी कर रहे हैं उससे यह संदेश जाएगा कि जब राना संवाद के लिए ऐसा कर सकते हैं तो बाकि लेखक क्यों नहीं।
यह शर्मनाक चाल है मुनव्वर राना की। मुनव्वर साहब, सब आपकी तरह नहीं होते। प्रधानमंत्री से संवाद क्यों करना? उनके पास देश का कानून है वे हत्यारों के खिलाफ उसका इस्तेमाल करके दिखा दें, सब खुद ब खुद ठीक हो जाएगा।
नरेंद्र मोदी से बातचीत क्यों करना भला? क्या वे रेडियों या फिर टीवी अथवा ट्विटर अकाउंट से असहिष्णुता फैलाने वालों को डांट डपट नहीं सकते?
मुनव्वर, बड़ी बेइज्जती करा दिए भई। कौम को बेचने का आरोप आज तक नेताओं पर लगता रहा लेकिन आपने तो सारी हदे ही लांघ डाली।
लेखक जाने माने पत्रकार और समाजसेवी है
नोट- ये लेखक की निजी राय है, कोहराम न्यूज़ पर प्रकाशित पाठको के पत्र का अर्थ कोहराम का सहमत होना नही है