हमारे संविधान-निर्माताओं ने जब संविधान के अनुच्छेद 44 में सामान नागरिक संहिता का समावेश किया तो उस वक़्त उनका ध्येय एक धर्मनिरपेक्ष , समाजवादी और लिंगभेद विहीन समाज का निर्माण करना था . आज की तारीख में त्रासदी यह हो गयी है कि भाजपा ने इस अनुच्छेद को सांप्रदायिक औजार बना लिया है जिसका मकसद हिदू धर्म से बगावत कर के निकले सारे अल्पसख्यकों –ख़ास कर मुसलमानों को भय और आतंक के साए में रखना है .
भाजपा और संघ परिवार मुसलमानों के खिलाफ हमले का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते और सामान नागरिक संहिता उनके बौधिक हथियारों में से एक हथियार है . यह बात अपने आप में हास्यास्पद है कि ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र जैसी मानसिकता से आज भी जकड़े हुए हिन्दू समाज में सुधार लाने के लिए सरकार कोई क़दम नहीं उठा रही है , बल्कि मुस्लिम औरतों की दशा सुधारने के नाम पर वह शरियत में हस्तक्षेप करना चाह रही है .
सामान नागरिक संहिता ( जिसके लिए तीन तलाक को पहला स्टेप बनाया गया है ) की बात राजनीती से प्रेरित है जिसका मकसद मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार कर के राष्ट्रीय-एकात्मता और धार्मिक सद्भाव को तहस-नहस करना है . . ज्ञातव्य हो कि नागपुरउच्च न्यायलय के अधिवक्ता जी.सी.सिंह ने कुछ वर्ष पूर्व कहा था कि सामान नागरिक संहिता की बात करने वाले वास्तव में ” देशतोड़क” हैं. उन्होंने कानून की पुस्तकों का हवाला देते हुए कई उदाहरण पेश किये और बताया था कि कैसे पुर्व में न्यायालयों ने सामान नागरिक संहिता के ” खिलाफ ” राय और फैसले दिए हैं. ” पन्नालाल बंशीलाल पाटिल बनाम आंध्र सरकार के मामले में न्यायलय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामान नागरिक कानून इस बहुधर्मी , बहू सांस्कृतिक देश के लिए सही नहीं है /// .
माननीय अधिवक्ता ने उस वक़्त सरकार को चुनौती देते हुए कहा था कि यदि सरकार सामान नागरिक संहिता लागु करना ही चाह्ती है तो उसे चाहिए कि पहले हिन्दू-समाज में व्याप्त ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र की अवधारणा और मानसिकता को समाप्त करे और इसके लिए कानून बनाये ./// .
आज हिदू समाज में भी दहेज़ के नाम पर बहुओं को जिंदा जलाया जा रहा है . तलाक के बाद उनकी स्थिति और दयनीय तथा बदतर बन जाती है और वे उपेक्षित और नारकीय जीवन बिताने पर मजबूर हो जाती हैं. हिन्दू समाज में तलाकशुदा स्त्रियोंके पुनर्विवाह का ज्यादा प्रचलन न होने से तलाकशुदा स्त्री का जीवन नरक बन जाता है . मगर हिदुओं का वोट पा कर सत्ता में आई सरकार हिन्दू-स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए कोई ठोस कानून बनाने की बजाय मुस्लिमों के तीन तलाक के पीछे पड़ी है ./// .
आज अगर सरकार तीन तलाक में सुधार के लिए अदालत जा रही है तो फिर उससे पूछना पड़ेगा कि उसे ” हिन्दू बहूओं ” से ज्यादा ” मुस्लिम बीवियों ” की चिंता क्यूँ है ??? हमारे विधि वेत्ताओं ने सामान नागरिक संहिता का प्रावधान इसलिए नहीं रखा था कि सारा देश एक ही तरह से उठे -बैठे , एक ही तरह के कपडे पहने , या तो सभी लोग दाढ़ी रखें या सभी लोग क्लीन शेव रहे , अथवा सभी एक ही तरीके से शादी करें , एक ही तरह के बच्चे पैदा करें और सबको एक ही तरह का भरण-पोषण मिले ! उनका मकसद यह कतई नहीं था कि पूरा देश एक ही तरह का ” यूनिफार्म ” पहन कर क़दमताल करे.दर असल यह कहना कि देश के सारे लोगों के लिए एक ही तरह का कानून हो—इस अनुच्छेद की भौंडी व्याख्या है . ऐसी व्याख्या करने वाले लोग देश की एकता , अखंडता और बहुधर्मी , बहुभाषी संस्कृति को नष्ट-भर्ष्ट कर के देश को रसातल में पंहुचाना चाहते हैं . आज उनके निशाने पर मुसलमान और शरियत है , कल उनके निशाने पर सिख, इसाई , बौद्ध और जैन धर्म के भी व्यक्तिगत कानून भी होगे . इसलिए इसको लागू करना आग से खेलना है और यह काम पूरे देश में टकराव और संघर्षों को जन्म देगा जो विकास की राह में तेज़ी से बढ़ते हुए राष्ट्र के लिए किसी भी तरह से हितकर नहीं होगा . सामान नागरिक संहिता को लागू करने या करवाने वाली सरकारों या अदालतों को इस तथ्य को ज़रूर संज्ञान में रखना चाहिये /// .
मोहम्मद आरिफ दगिया . 14/10/2016
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