एएमयू की मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी में 13.50 लाख पुस्तकों के साथ तमाम दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद हैं।1877 में स्थापित इस लाइब्रेरी में अकबर के दरबारी फ़ैज़ी द्वारा फ़ारसी में अनुवादित गीता है। 400 साल पुरानी फ़ारसी में अनुवादित महाभारत की पांडुलिपि है। तमिल भाषा में लिखे भोजपत्र हैं। कई शानदार पेटिंग और भित्ती चित्र हैं जिनमें तमाम हिंदू देवी देवता शामिल हैं। एएमयू का संग्रहालय में अनेक ऐतिहासिक महत्वपूर्ण वस्तुएँ हैं। इनमें सर सैयद अहमद का 27 देव प्रतिभाओं का वह कलेक्शन भी है जिसे उन्होंने अलग-अलग स्थानों का भ्रमण कर जुटाया था। इनमें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर का स्तूप और स्तूप के चारों ओर आदिनाथ की 23 प्रतिमाएं शामिल हैं। सुनहरे पत्थर से बने पिलर में कंकरीट की सात देव प्रतिमाएं हैं। एटा और फतेहपुर सीकरी से खोजे गए बर्तन, पत्थर और लोहे के हथियार हैं। शेष शैया पर लेटे भगवान विष्णु, कंकरीट के सूर्यदेव हैं। महाभारत काल की भी कई चीजें हैं। यहां तक कि डायनासोर के अवशेष भी हैं। मगर इन सबसे हमारा इस्लाम ख़तरे में नहीं आएगा। माफ कीजिएगा हमारा दिल बहुत बड़ा है। बस आप अपने ज़हन का ज़हर और धुँध हटाकर देखिए।
ज़्यादा फिक्र मत कीजिए। कर्नाटक की 23 सीटों पर ध्रुवीकरण बेहद ज़रूरी है इसीलिए संघ को अपने इष्टदेव जिन्नाह की याद आई है। चुनाव निपट जाने दीजिए। हारे तो जिन्नाह कि जिन्न लाउडस्पीकर, तीन तलाक़, लव जिहाद और गऊ माता की तरह वापस बोतल में वर्ना नागपुर हेडक्वार्टर में जिन्ना-सावरकर की बिरयानी-क़ोरमे के साथ वाली फोटो की पूजा। फिलहाल नौकरी, रोज़ी, रोटी, विकास और 15 लाख की बात करते रहिए। 2019 में यही काम आएंगे, जिन्नाह नहीं।

13 मार्च 1943 को सिंध असेंबली मे पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित हुआ। उस वक़्त जीएम हिदायतुल्लाह की मुस्लिम लीग सरकार में आरएसएस/हिंदू महासभा के तीन मंत्री थे। इसके बावजूद राव साहेब गोकलदास मेवलदास, डा हेमनदास आर वाधवन, और लोलू आर मोतवानी मुस्लिम लीग सरकार में मंत्री बने रहे। किसी ने भी इस्तीफा नहीं दिया। इससे पहले 1941 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल में फज़लुल हक़ की सरकार में वित्त मंत्री बने। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा गठबंधन की इस सरकार के मुखिया फज़लुल हक़ ने ही पाकिस्तान का प्रस्ताव पहली बार पेश किया। ये वो दौर था जब गांधी, नेहरू, पटेल और आज़ाद जैसे नेता जेल में थे। इस दौरान जिन्नाह और सावरकर ने मिलकर भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया। इससे भी पहले 1939 में नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में ख़ान अब्दुल जब्बार ख़ान के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस्तीफा दिया। इसके तुरंत बाद हिंदू महासभा और अकाली दल के साथ मिलकर मुस्लिम लीग ने गठबंधन सरकार बनाई। सरदार औरंगज़ेब के नेतृत्व वाली इस सरकार में आरएसएस नेता मेहर चंद खन्ना मंत्री बने। बहरहाल एएमयू छात्र संघ ने अकेले जिन्नाह की तस्वीर यूनियन हाल से न हटाकर देशद्रोह किया है। इसका एक ही प्रायश्चित है। वो श्यामा प्रसाद मुखर्जी और जिन्नाह की गलबहियों वाली साझा तस्वीर वहां लगाएं और उसके नीचे काला रंग और एक टूटा जूता रख दें। तस्वीर को नज़र नहीं लगेगी। इतिश्री वंदेमातरम कथा।
जिन्ना ने कहा कि एक व्यक्ति एक वोट लोकतंत्र नहीं बहुसंख्यकों का शासन क़ायम करेगा। उन्होने सेंट्रल असेंबली में कहा कि अंग्रेज़ों ने भारत के अल्पसंख्यकों के लिए वक़्त रहते प्रावधान नहीं किए तो वो बहुसंख्यकों के रहमोकरम पर ज़िंदा रहेंगे और कभी बराबरी हासिल नहीं करेंगे। जिन्ना का दावा था कि जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था की बात नेहरू और गांधी कर रहे हैं वो और कुछ नहीं हिंदू राष्ट्र ही होगा। जिन्ना ने बार बार दोहराया कि हिंदू इस मुल्क में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रखेंगे। जिन्ना का दावा था जिस लोकतंत्र का ख़्वाब कांग्रेसी दिखा रहे हैं उसमें न मुसलमानों के इदारे महफूज़ होंगे, न उनकी मस्जिदें, न तालीम और न ज़िंदगी। अंग्रेज़ों के जाने के बाद भी मुसलमानों को बराबरी और अपनी आज़ादी की लड़ाई जारी रखनी पड़ेगी। नेहरू और गांधी ने जिन्ना को बार-बार झूठा साबित करने की कोशिश की लेकिन उनके लोगों ने बार बार जिन्ना को सच्चा साबित किया। सत्तर साल बाद भी जिन्ना सच्चे हैं। लेकिन इस मुल्क के मुसलमानों ने जिन्ना की बात नहीं मानी और यहां के हिंदुओं पर भरोसा किया। सेक्युरिज़्म और मुल्क के निज़ाम पर भरोसा किया। मुसलमानों को अब कुछ साबित नहीं करना है। अब हिंदुओं की ज़बान, उनका सेक्युरिज़्म और उनका भरोसा दांव पर है। जिन्ना को झूठा साबित करने की ज़िम्मेदारी इस मुल्क के बहुसंख्यकों की है। अगर नहीं कर सकते तो फिर जिन्ना की एक तस्वीर हटाने भर से जिन्ना की विचारधारा ख़त्म नहीं होगी।
पत्रकार ज़ेगम मुर्तुजा की कलम से….