समझौता एक्सप्रेस बम धमाका मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य आरोपियों को बरी करने वाली एक विशेष अदालत ने कहा कि एनआईए न केवल मामले की जांच में लापरवाही बरती बल्कि मजबूत सबूतो को अदालत में पेश करने में भी नाकामयाब रही।
अपने आदेश में पंचकूला की विशेष अदालत के जज जगदीप सिंह ने कहा कि “अभियोजन द्वारा पेश किए गए सबूतों में कई लापरवाही थी, जिससे इस हिंसक घटना में किसी को सजा नहीं हो सकी। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है, क्योंकि दुनिया का कोई भी धर्म हिंसा नहीं फैलाता है। अदालत का आदेश लोगों की जनभावना के आधार पर नहीं होने चाहिए या फिर किसी राजनीति से प्रेरित नहीं होने चाहिए। यह सिर्फ सबूतों के आधार पर होना चाहिए।”
जज ने कहा कि इस केस में ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया गया, जिससे यह साबित होता हो कि यह अपराध आरोपियों ने किया है। साथ ही कई स्वतंत्र गवाहों से भी पूछताछ नहीं की गई। जज जगदीप सिंह ने कहा कि एनआईए आरोपियों के बीच की बातचीत के सबूत भी पेश करने में नाकामयाब रही। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ‘संदेह कभी भी साक्ष्य की जगह नहीं ले सकता।’
सिंह ने अपने फैसले में कहा, “मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से हिंसा के इस नृशंस कृत्य में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका। अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया।”
बता दें कि भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत के पास धमाका हुआ। उस वक्त रेलगाड़ी अटारी जा रही थी जो भारत की तरफ का आखिरी स्टेशन है। इस बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत हो गई थी।