नई दिल्ली | देश में पिछले कई सालो से चुनाव सुधार को लेकर बहस छिड़ी हुई है. 2011 में अन्ना आन्दोलन के समय में भी यह मांग बड़े जोर शोर से उठी थी. चुनाव के समय कालेधन के बेजा इस्तेमाल को लेकर, प्रत्याशी के एक से अधिक सीटो पर चुनाव लड़ने को लेकर , राजनितिक पार्टियों के चंदे के श्रोत की जानकारी देने और पार्टियों के आरटीआई के दायरे में आने को लेकर चुनाव आयोग , समय समय पर सिफारिशे भेजता रहता है.
इस बार भी चुनाव आयोग ने केन्द्रीय कानून मंत्रालय को सिफारिश भेज, प्रत्याशियों के दो जगह से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की है. इसके अलावा चुनाव आयोग ने कई और सुधारो के लिए प्रस्ताव भेजे है. चुनाव आयोग ने अपने प्रस्ताव में लिखा है की अगर कोई प्रत्याशी दोनों जगह से चुनाव जीत जाता है तो उसको एक जगह से सीट खाली करनी पड़ती है. यह वहां के वोटर के साथ अन्याय है.
इसके अलावा सीट छोड़ने के बाद वहां उपचुनाव कराने पड़ते है जिससे जनता के पैसे का दुरूपयोग होता है. इसलिए प्रत्याशी के दो जगह से चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए. अगर सरकार फिर भी जिद पर अडी है की इस सुधार को लागू नही करना है तो फिर यह प्रस्ताव पास करे की उपचुनावों में होने वाले खर्चे को , सीट छोड़ने वाला प्रत्याशी वहन करे.
चुनाव आयोग ने यह भी सिफारिश की है की अगर किसी प्रत्याशी के ऊपर सार्वजनिक एजेंसी का कोई बकाया है तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए. ऐसे लोग तभी चुनाव लड़ सकते है जब वो अपना सारा बकाया चूका दे. मालूम हो की 1996 में सरकार ने एक संसोधन करके कानून बना दिया था की कोई भी प्रत्याशी ज्यादा से ज्यादा दो जगहों से चुनाव लड़ सकता है. पहले इस तरह की कोई सीमा नही थी. साल 2004 में चुनाव आयोग ने इसे खत्म करने की सिफारिश की थी जिसको माना नही गया था.