देश में स्थलों के नाम बदलने के जो सिलसिला शुरू हुआ वह लगातार जारी है। सड़कों, चौराहों से शुरू हुआ ये सिलसिला स्टेशनों, शहरों आदि का नाम बदलते हुए अब राज्य के नाम बदलने तक आ पहुंचा है। दरअसल अब पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर बांग्ला करने का मामला सामने आया है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने इस साल जून में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारणों का हवाला देते हुए राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव पेश किया था। हालांकि इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विदेश मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर इस पर अपनी चिंता जताई है।
गृह मंत्रालय का कहना है कि नया नाम सुनने में ‘बांग्लादेश’ जैसा लगता है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोनों के नाम में फर्क कर पाना बेहद मुश्किल होगा। बांग्लादेश और भारत के बीच मित्रवत रिश्ते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए पश्चिम बंगाल के प्रस्ताव पर आगे बढ़ने से पहले विदेश मंत्रालय की राय मांगी गई।
बता दें कि पश्चिम बंगाल सरकार ने इस साल जून में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारणों का हवाला देते हुए राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव पेश किया था। ममता ने इस कदम का समर्थन करते हुए कहा था कि बंगाल में ‘पश्चिम’ शब्द बंगाल का ईस्ट बंगाल (बाद में पूर्वी पाकिस्तान) और आजाद भारत के पश्चिम बंगाल प्रांत में विभाजन की याद दिलाता है।
2016 में पश्चिम बंगाल विधानसभा ने पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर बंगाली भाषा में बांग्ला, इंग्लिश में बेंगाल जबकि हिंदी में बंगाल करने का प्रस्ताव पास किया था। हालांकि, गृह मंत्रालय ने यह कहते हुए आपत्ति दर्ज कराई थी कि तीन भाषाओं में अलग अलग नाम नहीं होने चाहिए। बनर्जी ने यह भी प्रस्ताव दिया था कि नाम बदलकर ‘पोश्चिम बॉन्गो’ होना चाहिए, लेकिन केंद्र सरकार ने इसका समर्थन नहीं किया।
राज्य सरकार के इस कदम का उद्देश्य वर्णमाला क्रम में राज्य का नाम ऊपर लाना था, जिसमें अभी पश्चिम बंगाल सबसे नीचे चल रहा था।