नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित किए गए एक पैनल का कहना है कि देश में वेश्यावृत्ति और स्वेच्छा से देह व्यापार करने वाले लोगों के खिलाफ पुलिस कोई न्यायिक कार्रवाई नहीं कर सकती।
कोर्ट ने 2011 में इस पैनल का गठन किया था जो अगले मार्च में सुप्रीम कोर्ट को अपना रिपोर्ट सौंपेगी। इस रिपोर्ट में यह संस्तुति की गई है कि स्वेच्छा से वेश्यावृत्ति का चुनाव करने वालों के खिलाफ पुलिस को किसी तरह की कानूनी कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है।
देश में कानूनी जटिलताओं के कारण वेश्यावृत्ति से जुड़े लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। रेल लाइट एरिया में स्थित वेश्यालयों पर पुलिस की छापेमारी के दौरान भी इन लोगों को काफी परेशानियां उठानी पड़ती हैं।
पुलिस करती है दुर्रव्यवहार
पैनल के मुताबिक, ‘देश में वेश्यालयों का संचालन करना गैरकानूनी है लेकिन स्वेच्छा से वेश्यावृत्ति करना नहीं। इसलिए वेश्यावृत्ति करने वाले लोगों को गिरफ्तार या सजा नहीं दिया जाना चाहिए। ना ही उनके साथ कोई दुर्रव्यवहार ही किया जाना चाहिए।’
पैनल ने अपने रिपोर्ट में इस बात की संस्तुति कि है कि अनैतिक तस्करी निवारण अधिनियम (आईटीपीए), 1956 की धारा 8 के को समाप्त कर देना चाहिए। वेश्यावृत्ति के लिए बहकाना या जबरदस्ती के करना एक अपराध है जिसके लिए छह महीने तक की जेल और 500 रुपये बतौर हर्जाना का प्रावधान है।
समिति ने कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस मानव तस्करी के नियमों की आड़ में अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करती है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप घोष की अगुवाई में गठित की गई इस समिति ने इस बात का भी समर्थन किया कि जो लोग स्वेच्छा से वेश्यावृत्ति के पेशे को छोड़ना चाहते हैं उनके पुर्नवास की व्यवस्था होनी चाहिए। जिससे कि वे आत्मसम्मान के साथ अपना जीवन यापन कर सकें। (24city.news)