नई दिल्ली | केंद्र में बीजेपी की सरकार बने तीन साल से ज्यादा हो चुके है. इन तीन सालो में मोदी सरकार ने जहाँ कुछ अप्रत्याशित कदम उठाये है वही सरकार कई मोर्चो पर विफल भी साबित हुई है. 2014 में लोकसभा चुनावो के दौरान प्रधानमंत्री मोदी वादा करते थे की हर साल दो करोड़ रोजगार सर्जित होंगे लेकिन तीन साल से ज्यादा समय बीतने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है. बल्कि यह कहना गलत नही होगा की हालात और ख़राब हुए है.
देश का एक बड़ा तबका असंगठित क्षेत्र में काम करता है. एक आंकड़े के अनुसार करीब 11 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में काम करता है. इस क्षेत्र में आने वाली दो तिहाई फैक्ट्रीज या उधम ऐसे है जो रजिस्टर्ड भी नही है. यहाँ तक की 6.3 करोड़ उधम कंपनीज एक्ट या फैक्ट्री एक्ट में भी नही आते. क्योकि इनमे से करीब 82 फीसदी फैक्ट्री तो घरो से ही संचालित होती है. हालाँकि इस क्षेत्र का देश की जीडीपी में बड़ा योगदान है.
लेकिन सबसे ज्यादा रोजगार सर्जित करने वाला यह क्षेत्र आज भारी बदहाली से गुजर रहा है. खासकर नोट बंदी के बाद से इस क्षेत्र की हालत और बदतर हुई है. हालाँकि नोट बंदी से पहले ही इस क्षेत्र में रोजगार सर्जन कम होना शुरू हो गया था. इस बात की पुष्टि नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की एक रिपोर्ट से भी साबित होती है. साल 2015-16 में करीब 3 लाख उधमो पर किये गए सर्वे में पता चला की पांच साल में उधमो की संख्या में 10 फीसदी यानि 57 लाख की वृद्धि हुई है.
जबकि कामगारों की संख्या में केवल 3 फीसदी या 33 लाख की ही वृद्धि हुई है. इसका मतलब है की इस क्षेत्र में सालाना केवल साढ़े छह लाख कामगार ही जुड़ रहे है. जो यह साबित करता है की असंगठित क्षेत्र में रोजगार सिमट रहे है. इससे पहले ऐसा ही एक सर्वे 2010-11 में किया गया था. हालाँकि रिपोर्ट में बताया गया है की इस क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों की आय पिछले 5 साल में 86 फीसदी बढ़ी है.