देश की सर्व्वोच अदालत बाबरी मस्जिद केस में न केवल मस्जिद की जमीन के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई करेगी, बल्कि बाबरी मस्जिद में मुस्लिमों के नमाज अदा करने के अधिकार को लेकर भी विचार भी करेगी.
दरअसल, मुस्लिम पक्षकार की ओर से पेश वकील राजीव धवन ने कोर्ट से संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर विचार करने की मांग की. जिसमे कहा गया है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है, इसके साथ ही राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था, ताकि हिंदू पूजा कर सकें.
धवन ने कहा कि उस आदेश ने मुस्लिमों के बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ने के अधिकार को छीन लिया है. इस वजह से अब पहले संविधान पीठ के उस फैसले पर विचार किया जाएगा. चीफ जस्टिस ने कहा कि राजीव धवन अगली सुनवाई के दिन 23 मार्च को इस मुद्दे पर अपने कानूनी पहलुओं को रखें.
इस आदेश को ध्यान में रखते हुए 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त हिंदुओं के अधिकार को मान्यता दी थी. जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक तिहाई हिस्सा हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई राम लला को दे दिया था.
इसके अलावा कोर्ट के बाहर समझौते को लेकर भी बेंच ने आदेश जारी करने से इंकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे मामले में समझौता का आदेश नही जारी करेंगे. जो मध्यस्था की अर्जी लेकर आये हैं वो चाहे तो पक्षकार के पास जाए वो कुछ नहीं कहेंगे.