मंगलवार को प्रशांत भूषण के 2020 आपराधिक अवमानना मामले सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई खत्म हो गई है। इसी के साथ शीर्षस्थ कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस मिश्रा ने कहा कि भूषण के बयानों और उनके स्पष्टीकरण को पढ़ना दुखदायक है। उन्होंने कहा, ”प्रशांत भूषण जैसे 30 साल अनुभव वाले वरिष्ठ वकील को इस तरीके से व्यवहार नहीं करना चाहिए। मैंने वकीलों को पेंडिंग केसों में प्रेस में जाने को लेकर फटकार भी लगाई है। कोर्ट के एक अधिकारी और राजनीतिज्ञ में अंतर है। प्रेस में जाना, प्रशांत भूषण जैसे वकीलों के ट्वीट में वजन होना चाहिए। यह लोगों को प्रभावित करता है।”
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि अदालती कार्यवाही की लाइव रिपोर्टिंग कई बार एक तरफा होती है और कई मामलों में गलत होती है। लेकिन, क्या हमने कोई कार्रवाई की है? जस्टिस बी आर गवई ने धवन से पूछा, ‘क्या वकील के लिए लंबित मामलों के बारे में इंटरव्यू या वेबिनार देना उचित है?’ इस पर धवन ने कहा कि वह इस बात से सहमत हैं कि मामले लंबित होने पर टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए।
Supreme Court reserves its judgement in the 2020 suo motu criminal contempt case against lawyer Prashant Bhushan. https://t.co/dI3qiHJ6Od
— ANI (@ANI) August 25, 2020
प्रशांत भूषण के वकील धवन ने सुनवाई के दौरान फिर से कहा कि अदालत में दायर की गई दलीलों और बयानों को अदालत के विचार करने से पहले प्रेस को जारी नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस मिश्रा ने कहा, ”हम इस आधार पर आदेश नहीं देने जा रहे हैं कि भूषण के समर्थन में कौन है और कौन नहीं। आप (भूषण) सिस्टम का हिस्सा हैं। आपकी गरिमा जजों के जैसी अच्छी है। यदि आप एक दूसरे को इस तरह खत्म करेंगे, लोगों का सिस्टम में भरोसा नहीं होगा।”
जस्टिस मिश्रा ने कहा, ”हम स्वस्थ आलोचना का स्वागत करते हैं। लेकिन हम आलोचना का जवाब देने के लिए प्रेस में नहीं जा सकते हैं। एक जज के रूप में मैं कभी प्रेस में नहीं गया। हमें इस नीति का पालन करना है। ऐसा मत मानिए कि हम किसी को आलोचना से रोक रहे हैं। हर कोई सुप्रीम कोर्ट की आलोचना कर रहा है। क्या हमने कोई ऐक्शन लिया है? प्रशांत के खिलाफ अवमानना का दूसरा केस 11 सालों से लंबित है। क्या हमने कोई ऐक्शन लिया है?” जस्टिस मिश्रा ने कहा कि कार्यकाल खत्म होने से पहले यह सब देखना दुखद है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने न्यायपालिका के खिलाफ ट्वीट पर खेद व्यक्त नहीं करने के अपने रुख पर ‘विचार करने’ के लिए कार्यकर्ता-वकील भूषण को 30 मिनट का समय दिया। जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हमने उन्हें पहले माफी मांगने का समय दिया, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रशांत भूषण ने हलफनामे में भी अपमानजनक टिप्पणी की है।