नई दिल्ली । सोहराबुद्दीन हत्याकांड की सुनवाई कर रहे सीबीआई के विशेष जज बृजगोपाल हरिकृष्ण लोया की मौत का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। क़रीब 3 साल पुराने इस मामले में जज के परिजन ने कई सवाल उठाए है। उन्होंने गुजरात सरकार से पूरे मामले की दोबारा जाँच कराने की माँग की है। परिजनो का आरोप है की जज लोया की मौत संदिग्ध परस्तिथियो में हुई थी जबकि हमें यह दिखाने की कोशिश हुई की उनकी मौत प्राकृतिक तौर पर हुई।
क़रीब तीन साल बाद जज लोया की बहन अनुराधा, भांजी नुपूर और पिता हरकिशन ने कारवाँ से बात करते हुए संदेह ज़ाहिर किया कि उनकी मौत हार्ट अटैक से नही हुई थी। जब उनकी मौत हुई तो उनके कपड़ों पर ख़ून के धब्बे थे। इसके अलावा लोया का जो फ़ोन उनके परिजन को दिया गया उसमें से सारा डाटा पहले ही डिलीट कर दिया गया। परिजनो का यह भी आरोप है की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट पर जो हस्ताक्षर थे वो जज लोया के ममेरे भाई के बताए गए जबकि सम्बंधित हस्ताक्षर वाला जस्टिस का कोई ममेरा भाई नहीं है।
इसके अलावा परिजनो ने यह भी आरोप लगाया की अभी तक भी उनको जस्टिस की मौत का समय नही बताया गया है। यही नही जस्टिस को अस्पताल ले जाने के लिए भी ऑटोरिक्शा का इस्तेमाल किया गया। अगर जस्टिस को हार्ट अटैक आया था उनको गाड़ी से क्यों अस्पताल नही ले जाया गया। इस पूरे मामले में जस्टिस के परिजन एक संघ कार्यकर्ता की भूमिका को भी संदिग्ध मान रहे है। उनका कहना है की उसी संघ कार्यकर्ता ने उन्हें फ़ोन कर जस्टिस को हार्ट अटैक आने की सूचना दी और उनका फ़ोन भी उसी कार्यकर्ता ने उनको सौंपा।
मालूम हो कि जस्टिस लोया, सोहराबुद्दीन हत्याकांड की सुनवाई कर रहे थे। इस मामले में अमित शाह पर इंसाफ़ की तलवार लटक रही थी। लेकिन 30 नवम्बर 2014 को जस्टिस लोया नागपुर के वीआइपी गेस्ट हाउस में मृत पाए गए। उनकी मौत के ठीक 30 दिन बाद जस्टिस लोया की जगह आए नए जज ने अमित शाह को हत्याकांड से बरी कर दिया।
हालाँकि उस समय जस्टिस के परिजनो ने अपना मुँह नही खोला लेकिन अब वो हिम्मत जुटाकर मीडिया के सामने आए। उस समय भी इस मामले को किसी मीडिया ने तवज्जो नही दी। हालाँकि विपक्ष के कई सांसदो ने उनकी मौत की जाँच की माँग को लेकर धरना भी दिया लेकिन किसी ने उनकी माँग नही सुनी। अब चूँकि यह मामला दोबारा सामने आया है इसलिए देखना होगा की मीडिया में यह कितना उछाला जाता है।