मुंबई: मोदी सरकार के राज में पहली बार बाजार का सबसे बुरा हाल हुआ और सेंसेक्स 23 हजार से नीचे बंद हुआ। इसमें निवेशकों के तीन लाख करोड़ रुपए डूब गए। डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 68 के पार है। ऐसे में मोदी सरकार के अर्थशास्त्र पर विरोधी ही नहीं बल्कि अपने भी सवाल उठाने लगे हैं।
देश में मोदी राज है, लेकिन बाजार का हाल मनमोहन राज के काल का हो गया है। बाजार में बिकवाली की ऐसी आंधी चली कि सेंसेक्स 800 की गिरावट के साथ 22,951 तो निफ्टी 240 अंकों की गिरावट के साथ 6,976 पर बंद हुआ। मोदी राज में पहली बार बाजार में आई ऐसी सुनामी के बीच निवेशकों को भरोसा देने सुबह वित्त मंत्रालय के सचिव सामने आए। लेकिन उनकी बातों से भी बाजार नहीं संभला तो खुद वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने मोर्चा संभाला।
शेयर बाजार में आए भूचाल से निवेशकों के पैर डगमगाए तो सरकार के अर्थशास्त्र पर पार्टी के भीतर से सवाल उठने लगा। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने ट्वीट किया कि मुझे दुख है कि मैनें भारतीय अर्थवयवस्था के नीचे फिसलने की जो बीते साल भविष्यवाणी की वो सही साबित हो रही है। लेकिन अबतक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। जब अपने मोदी सरकार के अर्थशास्त्र का गुणा भाग करने में जुटे थे तो विरोधी कैसे चूकते।
मोदी सरकार के बनने के बाद सेंसेक्स ने बीते साल 30,000 तो निफ्टी ने 9,000 अंको को पार किया था। लेकिन अब हालात दूसरे हैं। भले ही सरकार अंतरराष्ट्रीय कारणों को इसके लिए जिम्मेदारी ठहरा रही हो, पर गिरावट के लिए घरेलू कारण भी कम जिम्मेदार नहीं है। डॉलर को मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। एक डॉलर की कीमत 68 रुपये को पार कर चुकी है। औद्योगिक विकास रफ्तार नहीं पकड़ रहा। एक्सपोर्टस में लगातार गिरावट देखी जा रही। निजी क्षेत्र निवेश करने से कतरा रहा हैं। दो सालों से मानसून आंखमिचौली खेल रहा है। ऐसे में बाजार की पूरी उम्मीद आने वाले बजट से हैं। (News24)