नई दिल्ली | मोदी सरकार के 500 और 1000 के नोट बंद करने के बाद पूरा देश बैंक और एटीएम के सामने लाइन में खड़ा है. पुरे देश के अन्दर कारोबार के नाम पर केवल दुकाने और फैक्ट्री खुली हुई है, उनके अन्दर न प्रोडक्शन हो रहा है और न ही कोई कारोबार. हर तरफ त्राहि त्राहि मची हुई है. बैंक की लाइन में लगे लोग दम तोड़ रहे है और मोदी सरकार अपनी पीठ थप थापा रही है. लेकिन इसी बीच खबर आई है की एसबीआई ने विजय माल्या का कर्ज माफ़ कर दिया है.
एक अंग्रेजी दैनिक में छपी खबर के अनुसार एसबीआई ने करीब 7 हजार करोड़ रूपए का कर्ज माफ़ कर दिया है. एसबीआई ने विजय माल्या सहित कई डिफाल्टर उद्योगपतियों का नाम अपनी बैलेंस शीट से हटा लिया है. अंग्रेजी दैनिक की खबर के अनुसार जून 2016 में एसबीआई की बैलेंस शीट में करीब 48 हजार करोड़ रूपए नॉन पेर्फोर्मिन एसेट के तौर पर दर्ज था.
एसबीआई की इस लिस्ट में करीब 100 डिफाल्टर का नाम दर्ज था. अब इस लिस्ट से करीब 63 लोगो के नाम हटा लिए गए है. विजय माल्या ने एसबीआई से करीब 1200 करोड़ रूपए का कर्ज लिया था. रिकवरी ने होता देख एसबीआई ने इसे ख़राब हो चुके लोन में डाल दिया था. अब नोट बंदी के बाद , पुरे देश की जनता बैंक में अपना पैसा जमा कर रही है जिससे सभी बैंक का NPA लगभग पूरा हो चूका है. ऐसे में कोई भी बैंक इन उधोगपतियो का लोन माफ़ करने की स्थति में आ गया है.
NDTV के एक कार्यक्रम में कल बताया गया की पिछले दस सालो में उद्योगपतियों का करीब 2 लाख 56 हजार करोड़ का कर्ज माफ़ किया गया है. पिछले तीन सालो में ही केंद्र सरकार ने उधोगपतियो का करीब 1.25 लाख रूपए का कर्ज माफ़ किया गया. अब ऐसे में सवाल उठता है की क्या बैंकों को NPA से उभारने के लिए नोटबंदी की गयी? क्या बैंक ऐसे ही उधोगपतियो को पैसे बांटते रहेगी और आम जनता हर बार लाइन में दम तोडते हुए बैंक को उनके घाटे से उभारती रहेगी?