केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 उम्र वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। बुधवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि अगर पुरुष सबरीमाला मंदिर में अंदर जा सकते हैं तो महिलाएं भी वहां जा सकती हैं।
कोर्ट ने ये भी कहा कि जब भगवान ने पुरुष और महिला में कोई भेद नहीं किया, उसी ने दोनों को बनाया है तो फिर धरती पर भेदभाव क्यों किया जाता है। जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि किसी भी सावर्जनिक संपत्ति में अगर पुरुष को प्रवेश की इजाजत है तो फिर महिला को भी प्रवेश की इजाजत मिलनी चाहिए। एक बार जब मंदिर खुलता है तो उसमें कोई भी जा सकता है।
वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत सब नागरिक किसी भी धर्म की प्रैक्टिस या प्रसार करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसका मतलब है कि एक महिला के नाते आपका प्रार्थना करने का अधिकार किसी विधान के अधीन नहीं है, यह आपका संवैधानिक अधिकार है।
Sabarimala Temple entry issue: "Your (intervener) right to pray being a woman, is equal to that of a man and it is not dependent on a law to enable you to do that," observes Justice DY Chandrachud.
— ANI (@ANI) July 18, 2018
गौरतलब है कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं हैं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे।
इंडियन यंग लॉयर्स असोसिएशन ने एक जनहित याचिका दायर कर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत मांगी थी। केरल हाई कोर्ट ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को सही माना था। 2015 में केरल सरकार ने महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था लेकिन 2017 में उसने अपना रुख बदल दिया था।