नई दिल्ली | प्रधानमंत्री मोदी के नोट बंदी के फैसले के बाद ज्यादातर मीडिया ने इस कदम की तारीफ की. 8 नवम्बर को इसकी घोषणा हुई और अगले दो दिन के लिए बैंक बंद रखे गये. जैसे ही बैंक खुले , लोगो ने बैंक और एटीएम की तरफ दौड़ लगा दी. जिसका परिणाम यह हुआ की बैंक और एटीएम के सामने लम्बी लम्बी लाइन लग गयी. नोट बंदी के एक हफ्ते तक सभी मीडिया ग्रुप इसके फायदे गिनाने में लगे रहे.
लेकिन जब लाइन में खड़े लोग मरने लगे, शादिया टूटने लगी, कारोबार ठप्प होने लगे, लोग बेरोजगार होने लगे, तब चाहकर भी मीडिया इसको नजरंदाज नही कर सका. नोट बंदी की तारीफों से शुरू हुआ मीडिया का सफ़र, इसके वीभत्स रूप पर जाकर रुक गया. अब हालात ऐसे है की नोट बंदी हुए एक महीने से ऊपर हो चूका है लेकिन बैंकों और एटीएम के सामने से लाइन अभी भी कम नही हो रही है.
मीडिया के अन्दर नोट बंदी की नकारात्मक कवरेज से प्रधानमंत्री कार्यलय की भोहे तन गयी है. पीएमओ किसी भी सूरत में इसे रोकना चाहता है. मीडिया में लगातार नकारात्मक कवरेज से मोदी सरकार की छवि धूमिल होती जा रही है. इससे लोगो के पास यह सन्देश जा रहा है की नोट बंदी फ़ैल हो चुकी है. इसी को ध्यान में रखते हुए पीएमओ ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और पत्र सूचना ब्यूरो को तलब किया गया है.
पीएमओ ने दोनों विभागों को तलब कर यह आदेश दिया है की वो मीडिया ग्रुप से बात करे उन्हें नोट बंदी पर संतुलित कवरेज दिखाने के लिए प्रभावित करे. रेडिफ के राजीव शर्मा की और से लिखा गया है की पीएमओ के आदेश के बाद दोनों विभागों के अधिकारियो को यह समझ नही आ रहा है की वो इस आदेश को कैसे अमलीजामा पहनाये. इस खबर से साफ़ है की मोदी सरकार के अन्दर नोट बंदी को लेकर खलबली जरुर मची हुई है. उनका इसलिए भी चिंतित होना लाजिमी है क्योकि ज्यादातर अर्थशास्त्री नोट बंदी को फ़ैल बता रहे है.