रविवार को अपना 65वां जन्मदिन मनाने जा रहे मशहूर शायर मुनव्वर राना ने उर्दू को लेकर की जाने वाली राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सियासत ने उर्दू पर जितने वार किये, उतने दुनिया की किसी और जबान पर होते तो उसका वजूद खत्म हो गया होता. उन्होंने आगे कहा, लेकिन उर्दू की अपनी ताकत है कि यह अब तक जिंदा है और मुस्कुराती दिखती है.
भाषा से खास बातचीत में उन्होंने उर्दू की हालत को शायरी के अंदाज में बताते हुए कहा कि हमने पूरी जिंदगी में उर्दू जबान को आसमान से नीचे गिरते हुए देखा है. लेकिन यह पगली फिर भी अब तक खुद को शहजादी बताती है. उन्होंने आगे कहा, सियासत में ऐसी ताकतें ही घूम-फिरकर हुकूमत में आयीं जिन्होंने मिलकर इस जबान को तबाह किया. किसी शख्स या किसी मिशन को इंसाफ ना देना, उसको कत्ल करने के बराबर है
ध्यान रहे देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ दो साल पहले मुनव्वर राना ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था. इस बारें में उन्होंने कहा, मुल्क के मौजूदा सूरत-ए-हाल पर रंज का इजहार करते कहा कि उनकी आखिरी ख्वाहिश है कि वह अपने उसी पुराने हिन्दुस्तान में आखिरी सांस लेना चाहते हैं.
राना ने कहा कि आज तो मुल्क के कमजोर तबके यानी अल्पसंख्यक लोगों के साथ-साथ बहुसंख्यक लोग भी महसूस करने लगे हैं कि जो मौजूदा सूरतेहाल हैं, वे अगर जारी रहे तो कहीं ऐसा ना हो कि हमारी भविष्य की पीढ़ियां हिन्दुस्तान के इस नक्शे को नहीं देख पाएं.
उन्होंने कहा, यह जो सियासी उथल-पुथल है, उसमें एक बुजुर्ग की हैसियत से मुझो यह खौफ लगता है कि कहीं ऐसा ना हो कि हिन्दुस्तान में जबान, तहजीब और मजहब के आधार पर कई हिन्दुस्तान बन जाएं. यह बहुत अफसोसनाक होगा. मैंने जैसा हिन्दुस्तान देखा था, आजादी के बाद पूरा का पूरा, वैसा ही हिन्दुस्तान देखते हुए मरना चाहता हूं.