स्वर्णों में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण मुहैया कराने वाला बिल लोकसभा से पारित हो चुका है। लेकिन, 1992 में मंडल कमीशन पर फैसला देने वाले और आरक्षण सीमा 50 फीसदी निर्धारित करने वाले जजों में शामिल पूर्व जस्टिस एएम अहमदी ने इस बिल को सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के खिलाफ बताया है।
उन्होंने कहा कि बीजेपी की नेतृत्व वाली सरकार का यह कदम आरक्षण पर दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बिल्कुल उलट है। द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में जस्टिस अहमदी ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (सामान्य श्रेणी) को आरक्षण देने के फैसले को महज चुनावी उद्देश्य करार दिया।
ने कहा, “संविधान के अनुच्छेद 16 के मुताबिक पिछड़ा वर्ग का निर्धारण आर्थिक आधार पर बिल्कुल नहीं हो सकता। यह पूरी तरह से साफ है। इसी के मद्देनज़र हमने बहुमत वाले फैसले मे इसी बात का निर्णय लिया। मेरे विचार में सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के बहुमत वाले विचार से बिल्कुल उलट है।”

पूर्व जस्टिस अहमदी ने इस बात पर भी हैरानी जाहिर की कि सरकार ने इस मसले पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से राय ली भी है या नहीं। उन्होंने कहा, “मैं समझता हूं ( सामान्य श्रेणी को 10 फीसदी आरक्षण) इसमें और गहराई से अध्ययन की जरूरत है। मैं नहीं जानता कि यह कदम उठाने से पहले उन्होंने अटॉर्नी जनरल से सुझाव लिए हैं या नहीं। यह एक महत्वपूर्ण संवैधानिक फैसला है। वह (अटॉर्नी जनरल) एक स्वतंत्र आदमी हैं। मुझे याद है कि जब हम लोग इस मामले (आरक्षण) पर सुनवाई कर रहे थे उन्होंने बहस में हिस्सा लिया था।”
गौरतलब है कि जस्टिस अहमदी संविधान पीठ की उन 9 जजों की बेंच में शामिल थे जिन्होंने इंद्रा शाहने बनाम भारत संघ मामले की सुनवाई की थी। इस केस ने आरक्षण के कानूनी आधार स्पष्ट करने में अहम भूमिका निभाई थी।