बजट पेश करने के लिए सरकार ने छुपाई सांसद इ अहमद के निधन की बात?

नई दिल्ली | वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल लोकसभा में अपने कार्यकाल का चौथा बजट पेश किया. लेकिन इस बजट पर विवादों का भी साया रहा. पांच राज्यों में होने वाले चुनावो से पहले ही बजट पेश करने के सरकार के फैसले के खिलाफ विपक्ष ने चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन उनको मायूसी ही हाथ लगी. अब विपक्ष सरकार को सांसद इ अहमद के निधन पर घेरने की कोशिश कर रहा है.

केरल के मल्लपुरम से सांसद और आईयूएमएल नेता इ अहमद 30 साल तक सांसद रहे. 31 जनवरी को राष्ट्रपति के अभिभाषण के समय उनको दिल का दौरा पड़ा. तुरंत ही उनको दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में भर्ती कराया गया. 78 वर्षीय इ अहमद ने मंगलवार आधी रात को अंतिम सांस ली. अब इसी मुद्दे पर विपक्ष , खासकर कांग्रेस , मोदी सरकार पर हमलावर हो गयी है.

लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस लीडर मल्लिकार्जुन खड्गे ने आरोप लगाया है की सरकार ने जानबूझकर इ अहमद के निधन की खबर जारी करने में देरी की. जिससे की वो बिना किसी रोकटोक के बजट पेश कर सके. यह एक अमानवीय कृत्य है. परम्परा के अनुसार किसी भी सांसद के निधन के बाद संसद की कार्यवाही को दिन भर के लिए स्थगित कर दिया जाता है. लेकिन सरकार ने ऐसा नही किया.

खड्गे का आरोप है की सरकार को अहमद के निधन की जानकारी पहले से ही थी फिर भी वित्त मंत्री अरुण जेटली बजट की कॉपी लेकर राष्ट्रपति के पास गए. खड्गे ने कहा की आखिर बजट पेश करने की इंतनी जल्दबाजी क्यों थी? बजट को एक दिन बाद भी पेश किया जा सकता था. ऐसे नेता के लिए सरकार का यह रुख अस्वीकार्य है. हमने बजट को गुरुवार को पेश करने की मांग की थी. लेकिन उन्होंने इस मांग को नही माना.

उधर सरकार के बजट पेश करने के फैसले की चारो और से आलोचना हो रही है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कहा की इ अहमद के निधन के बाद बजट पेश नही किया जाना चाहिए था. उधर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने सरकार की ओलचना करते हुए कहा,’ अगर बजट की गोपनीयता पर कोई प्रभाव नही पड़ने वाला था तो बजट को एक दिन के लिए टाला जा सकता था, आखिर इनती जल्दबाजी किसलिए? यह सरकार की सोच को दर्शाती है’.

इ अहमद एक ऐसे सांसद थे जो 30 साल सांसद रहे, इनका सार्वजनिक जीवन बेदाग रहा और इन्होने समाज के लिए काफी उल्लेखनीय काम किये. अहमद के निधन के बावजूद संसद को स्थगित न करना और बजट पेश कर देना , सरकार के ऊपर एक सवालिया निशान जरुर लगा देता है. क्या चुनाव से पहले खुद को सुर्खियों में रखने के लिए ऐसा किया गया, या सरकार की कुछ संवैधानिक मजबूरिया थी, इसका जवाब सरकार को जरुर देना चाहिए.

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