देश भर में गौरक्षा के नाम पर मुस्लिमों को बड़ी बेदर्दी के साथ हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है. अधिकतर मामलों में पुलिस को गौरक्षकों के ही समर्थन में पाया गया है.
फरीदाबाद के ताजा मामले में भी पुलिस मौके पर तमाशबीन बनी रही. ऑटो ड्राईवर आजाद और उसके साथियों को गौरक्षकों ने बेदर्दी से पीटा लेकिन मौके पर मौजूद पुलिसकर्मी ने बचाना मुनासिब नहीं समझा. गौरक्षक पीटते रहे और वः देखता रहा. इसके साथ ही उल्टा पुलिस ने पीड़ितों पर ही गौरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया.
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ. दादरी से लेकर अलवर तक एक लंबी फेहरिस्त है. जिसमे खाकी साफ़ तौर पर भगवा होती नजर आई. हालांकि अब आजाद के ऑटो में मिले मांस की पशुपालन विभाग के डॉक्टरों से जब जांच की तो उक्त मांस भैंस का निकला. जिसके बाद अब पुलिस आजाद के उपर से दर्ज मामले को हटाने की बात कह रही है.
आजाद की पिटाई का जो वीडियो वायरल हुआ है, उसमे पास ही खड़े पुलिसकर्मी ईश्वर सिंह ने गौरक्षको से आगे रहकर पीड़ितों को पिटवाया, वीडियो वायरल होने के बाद उसे लाइन हाजिर कर दिया गया. ध्यान रहे
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पुलिस को अब पीड़ित और आरोपी की पहचान करने का भी सलीका नहीं रहा ? अगर ऐसा है तो पुलिस को खाकी वर्दी पहनने की जरूरत क्या है ?