कश्मीर में हिंसा को लेकर अलवगाववादी नेताओं ने रविवार को अमन के लिए चार सूत्रीय फ़ॉर्मूला पेश किया है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगरानी में भारत के साथ शांति स्थापना के लिए बातचीत की पेशकश की. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और राज्य प्रमुखों को संबोधित करते हुए अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने चार-सूत्रीय शांति प्रस्ताव रखा है और उसके लिए समर्थन मांगा है.
इस प्रस्ताव में ये चार महत्वपूर्ण बिंदु रखें गए हैं –
- भारत सरकार कश्मीर की विवादित स्थिति और यहां के लोगों के आत्मनिर्णय के हक़ की बात माने.
- आबादी वाले इलाक़ों से सेना हटाई जाए और ग़लती करने वाले सैनिकों को सुरक्षा देने वाला क़ानून ख़त्म किया जाए.
- राजनैतिक क़ैदियों को रिहा किया जाए. नज़रबंदी ख़त्म की जाए और आज़ादी के हक़ में बोलने वालों को राजनीति में जगह दी जाए.
- संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं के लोगों को कश्मीर आने की इजाज़त दी जाए.
गीलानी को मीरवाईज़ उमर, यासीन मलिक का समर्थन है, जो पहले उनके विरोधी थे. गिलानी ने यह ख़त संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, यूरोपीय संघ, सार्क, आसियान और इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) को संबोधित किया है.
इस बीच भारत सरकार ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान या किसी भी अलगाववादी से बातचीत से इनकार किया है. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा है, “कोई कश्मीर मुद्दा नहीं है. असल में मुद्दा पाकिस्तान और चीन की ओर से भारतीय इलाक़े पर अवैध क़ब्ज़े का है.”
भाजपा के समर्थन से बनी राज्य की गठबंधन सरकार ने “कश्मीर में शांति बहाली के लिए” अलगाववादियों को भरोसा दिलाया है. साथ ही उन्होंने पाकिस्तान, ईरान, तुर्की, सऊदी अरब, अमरीका, फ्रांस, चीन, यूके और रूसी प्रमुखों को भी यह ख़त लिखा है. ख़त में कहा गया है कि शांति कायम करने के लिए सही माहौल बनाने के लिए शुरुआत की जा सकती है और ये देश और संस्थाएं भारत पर भरोसा बढ़ाने संबंधी क़दम उठाने को ज़ोर डालें.
प्रतिबंधित चरमपंथी समूह लश्कर-ए-तैयबा ने बातचीत के लिए कश्मीर से सैनिकों की वापसी की शर्त रखते हुए कहा कि “कश्मीर के मुद्दों पर हुर्रियत कांफ्रेंस वैध है और लोगों को उनकी बात माननी चाहिए. बातचीत तभी होगी जब आर्मी हटाई जाएगी. एक साथ वार्ता और सैन्यीकरण नहीं हो सकता.”
साभार: बीबीसी हिन्दी