जम्मू-कश्मीर के कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ मंदिर में बलात्कार और सामूहिक हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश देते हुए मामले की सुनवाई के लिए राज्य से बाहर पठानकोट में ट्रांसफर कर दिया है.
सोमवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ ने सुनवाई बंद कमरे में और रोजाना आधार पर करने के भी निदेर्श दिए. साथ ही मामले की जांच CBI से करवाने से इंकार कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘फेयर (Fair) और फियर (Fear) एक साथ अस्तित्व में नहीं रह सकते’, और फेयर ट्रायल का मतलब स्पीडी ट्रायल भी है, इसलिए ट्रायल ‘डे-टू-डे’, यानी रोज़ाना होगा, जिसमें सुनवाई को टाला नहीं जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, मामले का ट्रायल ‘इन-कैमरा’ होगा, और सर्वोच्च न्यायालय ट्रायल की निगरानी करेगा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, सभी बयानों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया जाएगा, तथा ट्रायल रणबीर पीनल कोड के आधार पर चलेगा.
पीठ ने कहा कि पठानकोट जिला व सत्र न्यायाधीश मुकदमे को अपने पास रख सकते हैं, जबकि जम्मू एवं कश्मीर सरकार को सरकारी वकील नियुक्त करने की इजाजत है. कोर्ट ने राज्य सरकार को पीड़िता के परिजनों, उनके वकील और गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराने के आदेश दिए गए हैं.
मामले की अगली सुनवाई 9 जुलाई को होगी, जिसके लिए राज्य सरकार को आदेश दिया गया है कि वह गवाहों के बयान दर्ज कराने के लिए उन्हें पठानकोट ले जाएगी और उनका खर्च वहन करेगी. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, आरोपियों के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए.
इस दौरान पीड़िता के पिता की तरफ से अपनी बात रख रही वकील-सामाजिक कार्यकर्ता दीपिका सिंह राजावत ने कहा कि नाबालिग के परिवार को धमकाया जा रहा है. राजावत ने यह भी आरोप लगाया कि जम्मू बार एसोसिएशन के सदस्य उसे धमका रहे हैं और उनसे अदालत में पेश नहीं होने के लिए कह रहे हैं.